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अपने घर लौटा तो कोई था न स्वागत के लिए

घर के दरवाजों पे ताले थे शरारत के लिए

 

जब कहा मन ने तो ‘मोबाइल’ उठाकर बात की,

अब प्रतीक्षा कौन करता है किसी ख़त के लिए?

 

मैं बरी होकर भी दोषी हूँ स्वयं की दृष्टि में,

कुछ अलग कानून है मन की अदालत के लिए

 

बाहुबल से भी अधिक धन-बल जरुरी हो गया

हाँ, तभी जाकर जुटा जन-बल सियासत के लिए

 

अब न वैसे दोस्त हैं, परिजन भी अब वैसे नहीं,

आप किसके पास जायेंगे शिकायत के लिए?

 

हानि अथवा लाभ का चश्मा चढ़ा लेने के बाद-

वो बहुत चिंता नहीं करती है ‘अस्मत’ के लिए

 

झोंपड़ी की छत मिली सौ कोशिशों के बाद ही

एक भी कोशिश न की आकाश की छत के लिए

 

ज़हीर कुरैशी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Samar kabeer on May 6, 2017 at 3:44pm
इस मंच पर आपत्ति का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है,ये मंच सीखने सिखाने के उद्देश्य से बनाया गया है इसलिये इतनी चर्चा होती है,लेकिन कुछ दिनों से ये देखने में आ रहा है कि यहाँ सीखने वालों की तादाद कम होती जा रही है और सिखाने वालों की तादाद ज़ियादा है :-
'सब अँधेरों से कोई वादा किये बैठे हैं
कौन ऐसे में मुझे शमअ जलाने देगा'
'त'के क़ाफिये के साथ अगर 'ख़त'क़ाफ़िया लेना है तो ये ऐलान भी ज़रूरी होगा कि आपने सौती क़ाफ़िया ले लिया है,इसके बाद इसे गवारा किया जा सकता है,अन्यथा ऐतिराज़ का पहलू तो है ही,और रही उर्दू फ़ारसी की बात,तो यहाँ ये भी बता दूँ कि 'ख़त'शब्द उर्दू या फ़ारसी का नहीं,अरबी भाषा का है ।
और जिन्हें इसको क़बूल करना है वो मिसाल में किसी मुस्तनद शाइर का कोई ऐसा शैर पेश कर दें जिसमें 'त'के क़ाफ़ियों के साथ 'ख़त'का इस्तेमाल किया गया हो,हम इसे तस्लीम कर लेंगे,सिर्फ़ बातें बनाने से कोई फैसला तो नहीं होता,इसके बावजूद अगर कोई ऐसे क़ाफिये अपनी ग़ज़ल में रखना ही चाहे तो उसे चाहिये कि अपनी ग़ज़ल के साथ 'हिन्दी ग़ज़ल'लिख दे,फिर कोई कुछ नहीं कहेगा,अगर ऐसा नहीं किया जाता तो ऐसे सवाल तो ज़रूर उठेंगे।

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Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 8:05pm

आदरणीय ज़हीर भाई , ओ बी ओ पर स्वागत है आपका । आपके मार्गदर्शन के मंच की गज़लों मे और निखार आयेगा ।    

आदरनीय , बेहतरीन गज़ल से मंच को नवाजा है आपने , आपको हृदय से बधाइयाँ आदरणीय , मेरी व्यक्तिगत  समझ से ' खत ' काफिया सही है .... फिर भी आपके मार्गदर्शन का इंतिज़ार है ।

Comment by Ravi Shukla on May 5, 2017 at 5:41pm
आदरणीय ज़हीर साहब ओ बी ओ पर आपके आगमन से हमें बहुत प्रसन्नता हुई । निसंदेह आपके मार्गदर्शन में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा । आपका हार्दिक स्वागत है । इस मुरस्सा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई । सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 5, 2017 at 5:07pm

मोहतरम तस्दीक साहिब, मोहतरम ज़हीर साहब वरिष्ठ ग़ज़लकारों में से एक है जिनकी कई किताबें प्रकाशित हुई हैं। आपकी ख्याति हिंदुस्तानी ज़बान के ग़ज़लकार के रूप में है, इनकी अन्य रचनाएँ आप पढेंगे तो बात साफ हो जाएगी कि इन्होंने यहाँ ख़त काफिया क्यों लिया है। 

माजरत के साथ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 5, 2017 at 5:03pm

मोहतरम जनाब ज़हीर कुरैशी साहब आदाब, ओबीओ के मंच पर आपको देखकर इंतिहाई खुशी हो रही है, आपके जैसे वरिष्ठ ग़ज़लकार के आने से यह मंच और समृद्ध हुआ है, निस्संदेह आपके अनुभवों से हम नए गज़लकारों को सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद ओ मुबारक़बाद कुबूल फरमाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 5, 2017 at 5:03pm

मोहतरम जनाब ज़हीर कुरैशी साहब आदाब, ओबीओ के मंच पर आपको देखकर इंतिहाई खुशी हो रही है, आपके जैसे वरिष्ठ ग़ज़लकार के आने से यह मंच और समृद्ध हुआ है, निस्संदेह आपके अनुभवों से हम नए गज़लकारों को सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद ओ मुबारक़बाद कुबूल फरमाएँ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2017 at 4:52pm

हार्दिक अभिनन्दन जहीर जी इस सीखने सिखाने के शानदार मंच पर आपका .उम्दा ग़ज़ल हुयी है इसके लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2017 at 4:52pm

हार्दिक अभिनन्दन जहीर जी इस सीखने सिखाने के शानदार मंच पर आपका .उम्दा ग़ज़ल हुयी है इसके लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 4, 2017 at 11:50pm
मुहतरम जनाब ज़हीर क़ुरैशी साहब आदाब, ओबीओ मंच पर आपका स्वागत है। बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । कुछ शे'र तो बहुत ही सामयिक हैं । आदरणीय ज़हीर क़ुरेशी जी आदाब,ओबीओ मंच पर आपका स्वागत है। बहुत ही बेहतरीन सामयिक ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 4, 2017 at 9:59pm
झोंपड़ी की छत मिली सौ कोशिशों के बाद ही
एक भी कोशिश न की आकाश की छत के लिए..बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई..सादर

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