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ग़ज़ल ( हाए वो शख़्स निकलता है सितमगर यारो )

ग़ज़ल ( हाए वो शख़्स निकलता है सितमगर यारो )
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(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फेलुन )


मुन्तखिब करता है दिल जिसको भी दिलबर यारो |
हाए वो शख़्स निकलता है सितम गर यारो |

उनके चहरे से नज़र हटती नहीं है मेरी
किस तरह देखूं ज़माने के मैं मंज़र यारो |

कूचए यार से जाएँ तो भला जाएँ कहाँ
राहे उलफत में लुटा बैठे हैं हम घर यारो |

आस्तीनों में जो रखते हैं छुपा कर खंजर
उन अज़ीज़ों से हमेशा रहो बच कर यारो |

रु बरु उनके मैं रोता ही रहा सोच के यह
आँसुओं से तो पिघल जाते हैं पत्थर यारो |

डूब कर इनमें कोई उभरे तो उभरे कैसे
चश्मे दिलबर में है पोशीदा समुंदर यारो |

जिसको तस्दीक़ समझता रहा रहबर अपना
वो चुभोता ही रहा पीठ में नश्तर यारो |

मुन्तखिब --चुनना , पोशीदा-छुपा हुआ

( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 6, 2017 at 8:46pm
आदरणीय तस्दीक़ जी बहुत उम्दा ग़ज़ल हुयी हैइस ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 6, 2017 at 6:33pm
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
Comment by Samar kabeer on September 6, 2017 at 5:43pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 6, 2017 at 2:32pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by नाथ सोनांचली on September 6, 2017 at 2:00pm
वाह वाह आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है, किसी एक शैर की बात क्या कहूँ सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं,, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 6, 2017 at 9:55am
जनाब गुरप्रीत साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Gurpreet Singh jammu on September 6, 2017 at 9:39am

रु बरु उनके मैं रोता ही रहा सोच के यह 
आँसुओं से तो पिघल जाते हैं पत्थर यारो |

वाह वाह आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी,,, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,, सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं,, मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं 

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