For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- ग़लती कर पछताए कौन // दिनेश कुमार

22__22__22__2
.
ग़लती कर पछताए कौन
ख़ुद से नज़र मिलाए कौन
.
अपनी अना मिटाए कौन
सच्ची अलख जगाए कौन
.
पिछले लेखे-जोखे हैं
अपने कौन पराए कौन
.
राम भी कब से भूखे हैं
झूठे बेर खिलाए कौन
.
कस्तूरी मिल जाएगी
ख़ुद में गहरे जाए कौन
.
तूफ़ां नाम का तूफ़ां है
लहरों से टकराए कौन
.
माज़ी माज़ी करें सभी
मुस्तक़बिल चमकाए कौन
.
( मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 958

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on October 10, 2017 at 12:10pm
आत्ममुग्धता जैसी कोई बात नहीं है आ. सौरभ सर। कुछ व्यक्ति अपनी बात सशक्त तरीक़े से सही कहना नहीं जानते, बस मैं उनमें से एक हूँ। आम आदमी हूँ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 10, 2017 at 10:29am

आदरणीय दिनेश जी, आपकी कुछ टिप्पणियाँ पढ़ गया. आप एक विचारवान रचनाधर्मी हैं. उस हिसाब से आपकी टिप्पणियों की कुछ पंक्तियाँ चकित करने वाली हैं. ऐसी निर्लिप्तता उचित है क्या ? वैसे भी यह निर्लिपता नहीं एक तरह की आत्ममुग्धता जैसी कुछ है. ऐसी किसी भावदशा से हम सभी साग्रह बचने का प्रयास करें.. 

शुभकामनाओं के साथ ..

शुभ-शुभ

Comment by दिनेश कुमार on October 10, 2017 at 5:12am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. राज साहब। हौसला अफ़ज़ाई करने के लिए।
Comment by दिनेश कुमार on October 10, 2017 at 5:09am

ग़ज़ल पसन्द करने का बहुत बहुत शुक्रिया आ. सौरभ सर।
आपके दोनों ऐतराज़ सही हैं। कौन के बाद प्रश्नवाचक चिन्ह ज़ियादा बेहतर होता। और दूसरा बेर भी liar नहीं होते। एक कॉन्फेशन कि मैंने कभी आज तक जूठे शब्द का प्रयोग नहीं किया। लिखते वक्त। ग़ज़ल में नहीं, वैसे भी। शायद इसीलिए ग़लती अपने आप हो गई। शुक्रिया सर, ध्यान दिलाने के लिए। सादर।

Comment by दिनेश कुमार on October 10, 2017 at 4:58am

बहुत बहुत शुक्रिया आ. आरिफ़ साहब। ज़र्रानवाज़ी है आपकी जो आप मुझे ग़ज़लगो कहते हैं। तुकबंदी ही करता हूँ बस। शुक्रिया सर।
सच कहूं तो मैं मेंटली डिसऑर्डर का शिकार हूँ। अन्य विधाओं की रचना कभी कभी पढ़ता ज़रूर हूँ, लेकिन टिप्पणी करने का मूड नहीं होता।
ऐसा भी बहुत बार हुआ है कि मैंने अपनी ही रचनाओं पर आप सब आ. मित्रों की हौसला अफ़ज़ाई करती हुई प्रतिक्रियाओं का भी जवाब न देने की हिमाकत की है। सादर। आप सब की मुहब्बत को तहे दिल से सलाम। सादर

Comment by दिनेश कुमार on October 10, 2017 at 4:48am
बहुत बहुत शुक्रिया आ. निलेश सर। इनायत।
Comment by राज़ नवादवी on October 9, 2017 at 7:42pm

आदरणीय दिनेश कुमार जी, आपकी ग़ज़ल को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा, एक रसभरी गेयता का अनुभव हुआ. बधाई हो. सादर. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 9, 2017 at 4:25pm

भाई दिनेश कुमार जी, आपकी ग़ज़ल का ढंग आध्यात्मिक है. इन शरों की कथ्यात्मक गहराई आश्वस्तिकारी है. जैसे ,

पिछले लेखे-जोखे हैं
अपने कौन पराए कौन

 

कस्तूरी मिल जाएगी
ख़ुद में गहरे जाए कौन ,......................... वाह ! 

 

लेकिन, साथ ही, प्रश्न्वाचल पंक्तियों के लिए ? का चिह्न अन्योन्याश्रय हुआ करता है. इसे क्यों छोड़ दिया आपने ?

दूसरे, झूठे और जूठे में अंतर तो है न ? फिर बैर के साथ झूठे क्यों ? क्या बैर भी liar होते हैं ? .. :-))

शुभातिशुभ

Comment by Mohammed Arif on October 9, 2017 at 12:09pm
आदरणीय दिनेश कुमार जी आदाब, बहुत ही प्यारी छोटी बह्र की ग़ज़ल । हर शे'र लाजवाब । दली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
नोट:- कितना अच्छा अगर आप जैसे ग़ज़गो साहित्य की अन्य विधाओं में अपनी सृजनशीलता का परिचय देने वालों को भी अपनी टिप्पणियों से पोषित करें ताकि उनका उत्सासवर्धन हो सके ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 9, 2017 at 9:33am

वाह वा... सभी अशआर बेहद उम्दा और मानिखेज़ हैं..
बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service