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ग़ज़ल --- ख़ुदकुशी बार बार कौन करे // दिनेश कुमार

2122---1212---112/22
.
ख़ुदकुशी बार बार कौन करे
आप का इन्तिज़ार कौन करे
.
आइना टूटने से डरता है
झूट को शर्मसार कौन करे
.
अपना मतलब निकालते हैं सब
बे-ग़रज़ हमसे प्यार कौन करे
.
नाव टूटी है हौसला ग़ायब
ग़म के दरिया को पार कौन करे
.
हम हक़ीक़त से मुँह चुराते हैं
ख़्वाब को तार तार कौन करे
.
उस्तरा बन्दरों के हाथ में है
इन को सर पर सवार कौन करे
.
( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 3:59pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है अपने आदरणीय बधाई स्वीकारें |

Comment by Niraj Kumar on October 10, 2017 at 9:11pm

आदरणीय दिनेश जी 

बेहतरीन! क्या क्या शेर निकाले है. जितनी दाद दी जाय उतनी कम है.

आइना टूटने से डरता है
झूट को शर्मसार कौन करे

ये शेर ख़ास तौर से पसंद आया. 

आखिरी शेर भी लाजबाब है.

सादर 

Comment by Samar kabeer on October 10, 2017 at 8:48pm
जनाब दिनेश कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by राज़ नवादवी on October 10, 2017 at 1:27pm

आदरणीय दिनेश जी, सुन्दर रचना की प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें! सादर 

Comment by Afroz 'sahr' on October 10, 2017 at 1:20pm
आदरणीय दिनेश जी बहुत अच्छे अश्आर से नवाज़ा आपने मेंरी और से बहुत बधाई आपको सादर,,,,,,
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2017 at 12:48pm
वाह वाह आदरणीय दिनेश जी खूब ग़ज़ल कही..सादर
Comment by Ajay Tiwari on October 10, 2017 at 12:09pm

बहुत खूब, आदरणीय दिनेश जी,

शुभकामनाएं 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 10, 2017 at 9:07am

वाह वा. आ, दिनेश जी..बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने 
उस्तरा बन्दरों के हाथ में है....सत्य वचन 
बधाई 

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