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पर्यावरणीय कविता --"हिंसक"


हमने एक दुनिया उजाड़ दी
शेरों और नील गायों की
ख़रीद ली उनकी खाल
बारह सींगों के
सींगों से कर रहे हैं
घर की दीवारों का श्रृंगार
अब आदमखोर
शेरों को नहीं
इंसानों को कहना होगा बेहतर
हिंसक हरकतें सारी
चुरा ली है
शेरों से इंसानों ने
कितने ही लक्षण आ गए हैं
पशुओं वाले इंसानों में
ऐसे में लाजमी है
जंगलों का ख़त्म होना
शेरों का ख़त्म होना ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on December 17, 2017 at 9:45pm

कविता की सराहना और अनुमोदन का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 17, 2017 at 8:18pm

मुहतरम जनाब आरिफ साहिब आदाब , सीख देती ज़बरदस्त कविता हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by Mohammed Arif on December 17, 2017 at 5:56pm

पर्यावरणीय चेतना और मर्म को निरपेक्ष प्रतिक्रिया से सुशोभित करने का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी ।

Comment by नाथ सोनांचली on December 17, 2017 at 4:39pm

आद0 मोहम्मद आरिफ जी सादर अभिवादन। सच है आज इंसान आदमखोर हो गया है। आपकी पँक्तियाँ

अब आदमखोर 

शेरों को नहीं

इंसानों को कहना होगा बेहतर

बरबस ध्यान आकृष्ट करती हैं। बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर। सादर

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