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नाम बड़ा है उस घर का
पहरा जिस पर है डर का

प्यास बुझाना प्यासे की
कब है काम समंदर का

बिना बात बजते बर्तन
दृश्य यही अब घर-घर का

बोल कहे और जय चाहे
क्या है काम सुख़नवर का?

महल दुमहले जिसके हैं
वही भिखारी दर-दर का।

'राणा' सच कहते रहना
रंग न छूूटे तेवर का।

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2018 at 9:34am

आ. भाई सतविंद्र जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 27, 2018 at 4:13pm

वाह वाह राणा साहब खूब ग़ज़ल कही..सादर

Comment by Samar kabeer on April 27, 2018 at 11:51am

मतले का सानी मिसरा यूँ कर लें :-

'पहरा जिसपर है डर का'

Comment by Samar kabeer on April 25, 2018 at 10:33pm

आप मतले में क्या कहना चाहते हैं?भाव बताइये,मिसरा में बता दूँगा ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 25, 2018 at 9:49pm

आदरणीय समर कबीर जी ,सादर नमन! मतले के सानी के लिए भी मागर्गदर्शन की दरकार है। सादर निवेदन!

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 25, 2018 at 9:46pm

आदरणीय तेजवीर जी,उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार नमन!

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 25, 2018 at 9:43pm

आदरणीय श्याम नारायण जी हौंसलाफ़ज़ाई के लिए सादर आभार नमन!

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 25, 2018 at 9:42pm

आदरणीय मुहम्मद आरिफ जी,सादर नमन ! हौंसलाफ़ज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार

Comment by Samar kabeer on April 24, 2018 at 2:16pm

जनाब सतविन्द्र कुमार 'राणा' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले का सानी मिसरा लय में नहीं है,देखियेगा ।

तीसरा शैर यूँ कर लें तो उचित होगा: 

'बिन कारण बजते बर्तन

हाल यही है घर घर का'

Comment by TEJ VEER SINGH on April 23, 2018 at 2:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सतबिंदर जी।बेहतरीन गज़ल।

'राणा' सच कहते रहना
रंग न छूूटे तेवर का।

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"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
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"हार्दिक आभार आदरणीय "
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