छोटे के मन में यह बात घर कर गयी थी कि अम्माँ और बाबूजी उसका नहीं बड़े का अधिक ख़याल रखते हैं.
दोनों भाइयों की शादी होने के बाद यह भावना और बलवती हो गयी क्यूँ कि छोटे की बीवी को अपने तरीक़े से जीवन जीने की चाह थी. ऐसे में घर का बँटवारा अवश्यम्भावी था. बाबूजी ने छोटे को समझाने की बहुत कोशिश की , बड़े का हक़ मारकर भी वो दोनों को एक देखने पर राज़ी थे. बड़ा भी कुछ कुर्बानियों के लिए तैयार था अपने भाई के लिये लेकिन छोटे की ज़िद के आगे सब बेकार रहा.
आख़िरकार घर दो हिस्सों में बँट गया और एक हिस्से में दीवार खडी कर दी गयी. सदमे में बाबूजी ने खाट पकड़ ली और दिल में मलाल लिए चल बसे.
दीवार उठने के बाद भी दोनों घरों में आए दिन छोटी मोटी तू-तू, मैं मैं और लड़ाइयाँ होती रहती थी जिसे देख कर बड़े के बच्चों के मन में छोटे के बच्चों प्रति एक अजीब सा बैर भाव पनपने लगा.
वक़्त अपनी रफ़्तार से गुज़रता रहा.....
आज अम्माँ जी ने जब दीपावली की साफ-सफाई के लिए जब अलमारी का सामन ख़ाली किया तो बड़े के बेटे ने तांक झाँक करते हुए उस में छोटे की एक तस्वीर लगी हुई देखी और देखते ही उबल पडा...
"क्या दादी- इतना होने पर भी आप अब तक इन्ही की तरफ़ हो.. हमने जो गँवाया वो आपके लिए कुछ भी नहीं? इन्ही के हठ के चलते दादाजी गुज़र गए, आप का सुहाग उजड़ गया, घर बँट गया लेकिन आप को हम से ज़ियादा स्नेह शायद इनसे है... वहीँ जा कर क्यूँ नहीं रहतीं आप?"
वाक्य पूरा होने से पहले एक ज़ोरदार तमाचा उस के गाल पर पड़ा..
सामने माँ खड़ी थी जिसकी आँखों में ज्वाला थी- ख़बरदार जो दादी से इस लहजे में बात की तो... यह तस्वीर मैंने यहाँ लगाईं है ... और वो भी इसलिये कि जब कभी छोटे और उसका परिवार यहाँ आयें तो देख सकें कि हम आज भी उनके वापस आने के इंतज़ार में हैं.. हमारे दिल में आज भी उनके लिए जगह है... हम आज भी एक साथ रहना चाहते हैं"
बेटा शर्मिंदा होकर बाहर जाते हुए बस इतना ही सुन पाया कि - "इतनी नफ़रत मत करो कि जब ये दीवार गिरे तो छोटे का ठीक से स्वागत भी न कर पाओ"
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित
Comment
धन्यववाद आ. नीलम जी
आदरणीय नीलेश जी, नमस्कार । बहुत ही सुंदर लघुकथा की प्रस्तुति । हार्दिक बधाई ।
शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी
शुक्रिया आ. तेजवीर सिंह जी
शुक्रिया आ. समर सर
आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन कथा लिखी आपने। जीवन संस्कार और मूल्यों को इस कहानी में आपने अनुभव की चाशनी में डुबोकर हम पाठकों को बढिया कहानी से रूबरू कराया। वाकई में ऐसे हालत न केवल घर में अपितु समाज में भी देखने को मिल रहे हैं। आपकी पंचलाइन बहुत सटीक है। बहुत बहुत बधाई आपको।
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलेश जी।बेहतरीन लघुकथा।
जनाब निलेश जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
धन्यवाद आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब।
आपको लघुकथा पसंद आई यह जानकर प्रसन्नता हुई। यह कहानी संयुक्त परिवार बचाए रखने की प्रेरणा देने के लिए नहीं कही है। कहानी में व्यापक मुद्दे पर महीन इशारा है।
पिछले तीन दिन के अख़बार पढ़ेंगे और प्राइम टाइम की TV डिबेट सुनेंगे तो तस्वीर, अलमारी, बापू, दीवार,छोटे आदि प्रत्यक्ष अनुभव कर लेंगे। तब शीर्षक भी उपयुक्त लगेगा।
इतनी हिंट और लीजिये की अलमारी AMU है।
सादर
यही सकारात्मक रुख़ और आशावादिता ही हमारे हिन्दुस्तानी संयुक्त परिवार के चरित्र रहे हैं। पश्चिमी शैली की आंधियां अभी भी कुछ परिवारों तक नहीं जा सकीं हैं! ऐसी ही एक कहानी किसी कक्षा की अंग़्रेज़ी की क़िताब में पढ़ी थी, जिसमें तीन भाइयों में छोटे वाले की वज़ह से बंटवारे में सुधीजन मदद करते हैं, लेकिन सबसे बड़ा वाला ज़मीन/खेत का परित्याग कर संयुक्त परिवार को बरकरार रखने में मदद करता है। बहुत बढ़िया लघुकथा कहते हैं आप भी! तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नीलेश शेव्गांवकर साहिब। शीर्षक भी बढ़िया है, लेकिन और शीर्षक भी हो सकते हैं फिट।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online