For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पूरा ऑफिस इकट्ठा हो गया था, बॉस जूते निकालकर मंदिर में घुसा और गणपति आरती शुरू हो गयी. उसे यह सब ठीक नहीं लग रहा था लेकिन सब आये थे तो उसे भी आना पड़ा. एक किनारे खड़ा वह सोच रहा था कि अगर यहीं किसी और धर्म का व्यक्ति अपनी इबादत शुरू करना चाहे तो क्या ये लोग उसे भी इसी तरह करने देंगे.
चंद मिनटों बाद उसकी नज़र सफाई कर्मचारी हमीदन बी पर पड़ी, वह भी एक तरफ चुपचाप खड़ी थी. उसे बेहद आश्चर्य हुआ, यह उसकी धारणा के उलट था. खैर पूजा संपन्न हुई और प्रसाद देने वाले ने हमीदन बी को भी एक लड्डू और मोदक दिया जिसे उसने बड़े प्यार से अपने खोंचे में बाँध लिया. अब उससे रहा नहीं गया और उसने पूछ ही लिया "अरे हमीदन, तू कबसे पूजा पाठ में आने लगी?".
हमीदन ने साडी का पल्लू संभाला और बोली "साहब, मुझे तो कोई दिक्कत नहीं होती, जैसे हमारा मज़हब वैसे आपका. बस इसी बहाने हम भी उपरवाले को याद कर लेते हैं".
"लेकिन तुम्हारे यहाँ किसी को पता चलेगा तो क्या वह बुरा नहीं मानेगा. मतलब कोई मौलाना ऐतराज़ तो कर सकता है ना", उसने अपनी शंका प्रकट की.
"जब हमारे मरद ने हमको बिना तलाक़ दिए नया घर बसा लिया और किसी ने ऐतराज़ नहीं किया साहब, तो इसमें क्या करेगा", हमीदन ने जाते जाते कहा.
अब उसे अपने पूजा में आने का अफ़सोस हो रहा था.


मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 768

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on September 27, 2018 at 7:29pm
लघुकथा पर इस विस्तृत टिपण्णी के लिए बहुत बहुत आभार आ सुशील सरना साहब
Comment by Sushil Sarna on September 27, 2018 at 7:15pm


"जब हमारे मरद ने हमको बिना तलाक़ दिए नया घर बसा लिया और किसी ने ऐतराज़ नहीं किया साहब, तो इसमें क्या करेगा", हमीदन ने जाते जाते कहा. वाह आदरणीय विनय जी वाह बहुत सुंदर बात और कटाक्ष। अति सुंदर लघुकथा का विषय और उस विषय को सार्थक करती पंच लाइन। हार्दिक बधाई।

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 27, 2018 at 4:27pm

बढिया कथ्य भाई विनय जी, वर्तमान परिस्थितियों में मानवीय सोच की अलग ही बानगी सामने रखती उत्तम लघुकथा। हार्दिक बधाई भाई जी 

Comment by विनय कुमार on September 26, 2018 at 6:02pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on September 26, 2018 at 6:02pm

बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by Samar kabeer on September 26, 2018 at 5:49pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Neelam Upadhyaya on September 26, 2018 at 4:07pm

आदरणीय विनय कुमार जी, नमस्कार. सम-सामयिक  समस्याओं पर अच्छा सन्देश देती सूंदर लघुकथा की प्रस्तुति।  हार्दिक बधाई।

Comment by विनय कुमार on September 26, 2018 at 1:26pm

बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on September 26, 2018 at 1:26pm
Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2018 at 9:45am

हार्दिक बधाई आदरणीय विनय जी। बहुत सुन्दर संदेश देती बेहतरीन लघुकथा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . निर्वाण

दोहा दशम्. . . . निर्वाणकौन निभाता है भला, जीवन भर का साथ ।अन्तिम घट पर छूटता, हर अपने का हाथ ।।तन…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service