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"इस बार सारे हाव भाव बता रहे हैं कि बेटा ही होगा, मैं तो नेग में हीरे की अंगूठी लूँगी भाभी", मानसी ने चुहल करते हुए कहा.
वह बिस्तर पर लेटे लेटे मुस्कुरायी लेकिन उस मुस्कराहट के पीछे छिपे दर्द को मानसी ने पकड़ लिया.
"क्या बात है, इतनी ख़ुशी की बात पर भी तुम खुश नहीं हो भाभी, क्या दुबारा बेटी ही चाहिए?, मानसी ने थोड़े अचरज से पूछा.
वह सोचने लगी, स्कूल, कालेज और फिर शुरूआती नौकरी के दौरान होने वाले सभी पीड़ादायक अनुभव एक एक करके उसके जेहन में ताज़ा हो गए. हर कदम पर उसे लड़कों के छेड़ छाड़ को झेलना पड़ा था, खासकर उनकी चुभती निगाहें जो उसके चेहरे से नीचे टिकी रहती थीं. भाई उससे बड़ा था इसलिए वह उसे डांट नहीं सकती थी लेकिन माँ से उसने कई बार उसकी शिकायत की थी "माँ, भैया को मैंने कालेज के सामने कई बार देखा है लड़कियों को घूरते हुए, आप उसको डांट दीजिये". लेकिन माँ हमेशा उसे ही समझा देती "अरे लड़का है, थोड़ी मस्ती करता होगा, जाने दे. ठीक है मैं बात करती हूँ उससे", लेकिन माँ ने कभी भैया से बात नहीं की.
'अच्छा एक बात कहूँ मानसी, मेरी भी एक इच्छा है".
"क्या भाभी, अगर छोटा गिफ्ट देना चाहती हो तो भी चलेगा", मानसी ने माहौल हल्का करने की कोशिश की.
थोड़ी देर सोचने के बाद वह बोली "अगर लड़का ही पैदा हो तो काश उसकी वैसी ऑंखें नहीं हों".

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on October 4, 2018 at 4:42pm

बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी

Comment by Neelam Upadhyaya on October 4, 2018 at 4:41pm

आदरणीय विनय कुमार जी, अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति पर बधाई  स्वीकार करें। 

Comment by विनय कुमार on October 3, 2018 at 5:09pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब

Comment by विनय कुमार on October 3, 2018 at 5:09pm
आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब, लघुकथा को इतने गौर से पढ़ने और उसपर अपना बहुमूल्य विचार रखने के लिए आभार. आपकी और अन्य मित्रों की टिप्पणियों को पढ़कर मैंने इसमें एक बदलाव किया है "ऑंखें" की जगह "वैसी ऑंखें" किया है. उम्मीद है अब आप सहमत होंगे. धन्यवाद
Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 12:03pm

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2018 at 6:18am

बेहतरीन रचना।.हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार साहिब। इसमें अंतिम पंक्ति कुछ ज़्यादा ही तीखी/कड़वी/अस्वाभाविक हो गई मेरी नज़र में।//काश उसकी ऑंखें नहीं हों".// की जगह कुछ और कहा जा सकता है जैसे // काश मुझे मेरी मां जैसा न बनाकर भगवान ऐसी मां साबित करा दे कि बेटे  को सही राह पर चला कर लड़कियों की आंखों का तारा सा भी बना सकूं!// ऐसा कुछ छोटा सा संवाद। सादर सुझाव मात्र। 

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