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महल टूटा जो ख्वाबों का तो फिर बिखरा नज़र आया ।
गुलिस्ताँ जिसको समझा था वही सहरा नजर आया ।।1

बहुत सहमा है तब से मुल्क फिर खामोश है मंजर।
उतरते ही मुखौटा जब तेरा चेहरा नजर आया ।।2

अजब क़ानून है इनका मिली है छूट रहजन को ।
मगर ईमानदारों पर बड़ा पहरा नज़र आया ।।3

सियासत छीन लेती होनहारों के निवालों को ।
हमारा दर्द कब उनको यहाँ गहरा नजर आया ।।4

वो भूँखा चीखता हक माँगता मरता रहा लेकिन ।
मेरे घर का कोई मुखिया मुझे बहरा नजर आया ।।5

बहुत बेख़ौफ़ होकर अम्न का सौदा किया उसने ।
चमन में जब तलक अम्नो सुकूँ ठहरा नजर आया ।।6

गरीबों पर शिकारी भेड़ियों ने तब किया हमला ।
लहू का जब उन्हें कोई वहां कतरा नज़र आया ।।7

जिसे हर हाल में अपनी बड़ी कुर्सी बचानी है ।
वही जनता की नजरों से बहुत उतरा नज़र आया ।।8

यहाँ तो लोग पढ़ लेते हैं साहब आपकी फ़ितरत ।
नये जुमलों में पब्लिक को बड़ा ख़तरा नज़र आया ।।9

खुलेंगी दर परत दर साजिशें बेशक करप्शन की ।
कोई हाकिम तुम्हारी बात से मुकरा नज़र आया ।।10

जो चर्चा छेड़ दी मैंने तुम्हारे कारनामे पर ।
जुबां पर दर्द लोगों का बहुत उभरा नज़र आया ।।11

हजारों कोशिशों के बाद भी पहुँचा नहीं कोई ।
तुम्हारे दिल का तो रस्ता बहुत सँकरा नज़र आया ।।12


-नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 748

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Comment by Surkhab Bashar on October 26, 2018 at 11:03am

जनाब, नवीन मणि  जी 

बहुत बहुत मुबारक बाद. उम्दा ग़ज़ल  के लिये

Comment by TEJ VEER SINGH on October 26, 2018 at 9:36am

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।

बहुत सहमा है तब से मुल्क फिर खामोश है मंजर।
उतरते ही मुखौटा जब तेरा चेहरा नजर आया ।।2

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2018 at 5:59am

आ. भाई नवीन जी , बड़ी ही उम्दा गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

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