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शायरी फख्र से महफ़िल में जुबानी आई ।
आप आये तो ग़ज़ल में भी रवानी आई ।।

लौट आयीं हैं तुझे छू के हमारी नजरें ।
जब दरीचे पे तेरे धूप सुहानी आई ।।

पूँछ लेता है वो हर दर्द पुराना मुझसे ।
अब तलक मुझको कहाँ बात छुपानी आई ।।

तीर नजरों से चला कर के यहां छुप जाना ।
नींद मेरी भी तुझे खूब चुरानी आई ।।

मुद्दतों बाद जो गुजरा था गली से इकदिन ।
याद मुझको तेरी हर एक निशानी आई ।।

दर्द पूछा जो किसी ने तो जुबां पर उसकी ।
बारहा ज़ुल्म की तेरी वो कहानी आई ।।

क्यों करूँ शिकवा गिला तुमसे भला ऐ साकी ।
मेरे हिस्से में जो बोतल थी पुरानी आई ।।

रहजनों की है नज़र अब तो सँभल कर निकलो ।
बज़्म से लुट के कई बार सयानी आई ।।

हो गए खूब फ़ना ज़ुल्फ़ पर लाखों आशिक ।
जब भी चेहरों पे कहीं सुर्ख जवानी आई ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Naveen Mani Tripathi on October 26, 2018 at 1:26pm

आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार। 

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 26, 2018 at 1:26pm

आ0 धामी साहब सादर आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 25, 2018 at 11:39am

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ शत शत आभार आपकी इस्लाह अत्यंत महत्वपूर्ण है । वाकई आपकी इस्लाह मेरी ग़ज़ल में चार चांद लगा देती है । 

जब आप मेरी ग़ज़ल तक आते हैं तो धन्य हो जाता हूँ ।

सादर नमन ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 25, 2018 at 2:11am

आ. भाई नवीन जी , अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई । शेष गुणी जन विचार रख ही चुके हैं ।

Comment by Samar kabeer on October 24, 2018 at 3:51pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

शायरी फख्र से महफ़िल में जुबानी आई ।
आप आये तो ग़ज़ल में भी रवानी आई ।।--मतले का ऊला स्पष्ट नहीं,शिल्प कमज़ोर है, यूँ करें:-

'शाइरी फ़ख़्र से महफ़िल में सुनानी आई'

लौट आयीं हैं तुझे छू के हमारी नजरें ।
जब दरीचे पे तेरे धूप सुहानी आई ।।--ठीक है ।

पूँछ लेता है वो हर दर्द पुराना मुझसे ।
अब तलक मुझको कहाँ बात छुपानी आई ।।--ऊला में 'पूंछ' को "पूछ" कर लें,पचास बार आपको बता चुका हूँ ।

तीर नजरों से चला कर के यहां छुप जाना ।
नींद मेरी भी तुझे खूब चुरानी आई ।।--ठीक है ।

मुद्दतों बाद जो गुजरा था गली से इकदिन ।
याद मुझको तेरी हर एक निशानी आई ।।--ठीक है ।

दर्द पूछा जो किसी ने तो जुबां पर उसकी ।
बारहा ज़ुल्म की तेरी वो कहानी आई ।।--ठीक है ।

क्यों करूँ शिकवा गिला तुमसे भला ऐ साकी ।
मेरे हिस्से में जो बोतल थी पुरानी आई ।।--सुना है,पुरानी शराब ज़ियादा मज़ा देती है,फिर शिकवा कैसा?

रहजनों की है नज़र अब तो सँभल कर निकलो ।
बज़्म से लुट के कई बार सयानी आई ।।--सानी में 'कई' की जगह "हर" कर लें ।

हो गए खूब फ़ना ज़ुल्फ़ पर लाखों आशिक ।
जब भी चेहरों पे कहीं सुर्ख जवानी आई--ठीक है ।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 23, 2018 at 6:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।

अब न चर्चा करो तुम मेरी मुहब्बत की हुजूऱ ।
अब तलक मुझको कहाँ बात छुपानी आई ।।

क्यों करूँ शिकवा गिला तुमसे भला ऐ साकी ।
मेरे हिस्से में जो बोतल थी पुरानी आई ।।

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