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शायरी फख्र से महफ़िल में जुबानी आई ।
आप आये तो ग़ज़ल में भी रवानी आई ।।
लौट आयीं हैं तुझे छू के हमारी नजरें ।
जब दरीचे पे तेरे धूप सुहानी आई ।।
पूँछ लेता है वो हर दर्द पुराना मुझसे ।
अब तलक मुझको कहाँ बात छुपानी आई ।।
तीर नजरों से चला कर के यहां छुप जाना ।
नींद मेरी भी तुझे खूब चुरानी आई ।।
मुद्दतों बाद जो गुजरा था गली से इकदिन ।
याद मुझको तेरी हर एक निशानी आई ।।
दर्द पूछा जो किसी ने तो जुबां पर उसकी ।
बारहा ज़ुल्म की तेरी वो कहानी आई ।।
क्यों करूँ शिकवा गिला तुमसे भला ऐ साकी ।
मेरे हिस्से में जो बोतल थी पुरानी आई ।।
रहजनों की है नज़र अब तो सँभल कर निकलो ।
बज़्म से लुट के कई बार सयानी आई ।।
हो गए खूब फ़ना ज़ुल्फ़ पर लाखों आशिक ।
जब भी चेहरों पे कहीं सुर्ख जवानी आई ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार।
आ0 धामी साहब सादर आभार ।
आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ शत शत आभार आपकी इस्लाह अत्यंत महत्वपूर्ण है । वाकई आपकी इस्लाह मेरी ग़ज़ल में चार चांद लगा देती है ।
जब आप मेरी ग़ज़ल तक आते हैं तो धन्य हो जाता हूँ ।
सादर नमन ।
आ. भाई नवीन जी , अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई । शेष गुणी जन विचार रख ही चुके हैं ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
शायरी फख्र से महफ़िल में जुबानी आई ।
आप आये तो ग़ज़ल में भी रवानी आई ।।--मतले का ऊला स्पष्ट नहीं,शिल्प कमज़ोर है, यूँ करें:-
'शाइरी फ़ख़्र से महफ़िल में सुनानी आई'
लौट आयीं हैं तुझे छू के हमारी नजरें ।
जब दरीचे पे तेरे धूप सुहानी आई ।।--ठीक है ।
पूँछ लेता है वो हर दर्द पुराना मुझसे ।
अब तलक मुझको कहाँ बात छुपानी आई ।।--ऊला में 'पूंछ' को "पूछ" कर लें,पचास बार आपको बता चुका हूँ ।
तीर नजरों से चला कर के यहां छुप जाना ।
नींद मेरी भी तुझे खूब चुरानी आई ।।--ठीक है ।
मुद्दतों बाद जो गुजरा था गली से इकदिन ।
याद मुझको तेरी हर एक निशानी आई ।।--ठीक है ।
दर्द पूछा जो किसी ने तो जुबां पर उसकी ।
बारहा ज़ुल्म की तेरी वो कहानी आई ।।--ठीक है ।
क्यों करूँ शिकवा गिला तुमसे भला ऐ साकी ।
मेरे हिस्से में जो बोतल थी पुरानी आई ।।--सुना है,पुरानी शराब ज़ियादा मज़ा देती है,फिर शिकवा कैसा?
रहजनों की है नज़र अब तो सँभल कर निकलो ।
बज़्म से लुट के कई बार सयानी आई ।।--सानी में 'कई' की जगह "हर" कर लें ।
हो गए खूब फ़ना ज़ुल्फ़ पर लाखों आशिक ।
जब भी चेहरों पे कहीं सुर्ख जवानी आई--ठीक है ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।
अब न चर्चा करो तुम मेरी मुहब्बत की हुजूऱ ।
अब तलक मुझको कहाँ बात छुपानी आई ।।
क्यों करूँ शिकवा गिला तुमसे भला ऐ साकी ।
मेरे हिस्से में जो बोतल थी पुरानी आई ।।
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