बहुत से फंदे है
उनके पास
छोटे-बड़े नागपाश
इन फंदों में
नहीं फंसती उनकी गर्दन
जो इसे हाथ में लेकर
मौज में घुमाते है
लहराते है
किसी गरीब को देखकर
फुंकारता है यह
काढता है फन
किसी प्रतिशोध भरे सर्प सा
लिपटता है यह फंदा
अक्सर किसी निरीह के
गले में कसता है
किसी विषधर के मानिंद
और चटका देता है
गले की हड्डियाँ
किसी जल्लाद की भांति
मुस्कराता है यह फंदा
हंसता है वितृष्ण हंसी
देखता है अपने
उन आकाओं की ओर
जिनके हाथ में है उसकी डोर
जिनके परस से
ढीला पड़ जाता है वह
किसी मरे हुये सांप की तरह
जैसे धूप तपाती है गरीब को
जैसे शीत कंपाती है गरीब को
जैसे दरिद्रता सताती है गरीब को
जैसे भूख मार देती है गरीब को
वैसा ही दुश्मन-ए-गरीब है यह फंदा
नाचता है यह
अमीरों की उंगली पर
काँपता है यह पावर के नाम से
थरथराता है यह उन सारी ताकतों से
जिनमे है हौसला
इसे खंड-खंड करने का
इसको तोड़ने का अपरूप करने का
अपने पावर का बटन
दबाये रखने का
पर इसे तोड़ना भी
एक अपराध है
अपराध कर हर कोई नहीं छूटता
किसी लुटरे को कोई नहीं लूटता
वैसे ही फंदे को
अशक्त नही मापते
मेरे जैसे निर्बल
इसकी हर बला से कांपते
एक दिन आखिर
वह मुझसे टकरा गया
बोला –‘बच नहीं पाओगे ,
इतनी सारे फंदे हैं,
किसी में नप जाओगे
घटिया से कवि हो
कहीं भी खप जाओगे
मुझको देखो मैं
फंदों में एक फंदा हूँ
मुझ पर विश्वास करो
पूरी तरह अँधा हूँ
कोई मुझ अंधे से ज्यों ही टकराता है
और उसमे पावर का करेंट नहीं आता है
बस मैं चिपक जाता हूँ
मैं कोई माफिया नहीं
न कोई अफलातून हूँ
न ही किसी पागल का
लिखा मजमून हूँ
मैं कुछ दरिन्दों की
नसों का बहता खून हूँ
फंदा तो आचरण है
मैं देश का कानून हूँ !
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आ० मिथिलेशजी , आपके दो शब्द बहुत हैं मेरे लिए .
प्रिय नीरज जी आप शत शत आभार .
आ० राजेश दीदी आपकी टीप से मन उत्साहित हुआ है . सादर.
आ० प्रतिभा पाण्डेय जी
आपके प्रोत्साहन का आभारी हूँ .
कांता राय जी
बेहद शुक्रगुजार हूँ .
आ० समीर कबीर साहिब
आपकी टीप सदैव मेरा मनोबल बढ़ती है .
आ० राहिला जी
आपका सादर आभार .
आदरणीय गोपाल सर बहुत ही शानदार वैचारिक प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
इन फंदों में
नहीं फंसती उनकी गर्दन
जो इसे हाथ में लेकर
मौज में घुमाते है
लहराते है
किसी गरीब को देखकर
फुंकारता है यह
काढता है फन
किसी प्रतिशोध भरे सर्प सा
लिपटता है यह फंदा .... बहुत कटु पर यथार्थ .... बधाई इस सत्य से रूबरू कराती कविता के लिए ...
जीवन में कितने फंदे हैं इंसान किसी में तो नापेगा |नपना और नापना जीवन भर चलता है कमजोर नपता है शक्तिशाली नापता है
किन्तु सबको नापने वाला ऊपर बैठा है यदि इसका ज्ञान वक़्त रहते हो जाए तो शायद पावर वाले फंदे की भी आँखें खुल जाएँ |आपकी कविता बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है हार्दिक बधाई इस शानदार प्रस्तुति पर आ० डॉ गोपाल भाई जी.
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