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दुश्मनी को भूल जाऊँ दोस्ती की बात तो हो
नफरतों को छोड़ भी दूँ इश्क़ के हालात तो हो।
मर चुके अहसास मेरे मान लेता हूँ चलो मैं
पर उधर भी तो पिघलता एक भी जज्बात तो हो।
जिंदगी में छा गया है अब अमावस सा अँधेरा
नूर सी चमके यहाँ भी चाँदनी इक रात तो हो।
हर कदम पर ठोकरें थकने लगा हूँ जूझ कर अब
जीतना मुमकिन नहीं है फिर चलो अब मात तो हो।
लो खड़ा है बिकने ‘चंदन’ इश्क़ के बाजार में अब
वो खरीदेगा मुझे क्या उसकी यह औकात तो हो ।
मौलिक/अप्रकाशित
आशीष कुमार "चंदन"
Comment
' जिंदगी में छा गया है अब अमावस सा अँधेरा'
ऐब-ए-तनाफ़ुर,कहते हैं,एक शब्द के अंतिम अक्षर और उसके बाद आने वाले शब्द का पहला अक्षर समान होना,जैसे आपके मिसरे में 'अमावस सा'यानी अमावस शब्द का अतिंम अक्षर 'स' और उसके बाद 'सा' शब्द का पहला अक्षर 'स' समान हैं,उम्मीद है आप समझ गए होंगे ।
ग़ज़ल सीखने के लिए आप ओबीओ पर 'ग़ज़ल की कक्षा' और "ग़ज़ल की बातें" समूह का लाभ ले सकते हैं ।
आदरणीय समर कबीर जी नमस्कार,
आपका बहुत बहुत आभार कि आपने गजल की समीक्षा की और त्रुटियाँ बताई।
मैंने अभी शुरुआत की है और गजल के नियमों से भलीभांति परिचित नहीं हूँ।
हालात और जज्बात बहुवचन हैं इनके साथ "हो" के स्थान पर "हों" आना चाहिए ये तो मैं समझ गया हूँ किन्तु "ऐब-ए-तनाफ़ुर" क्या होता है इससे मैं परिचित नहीं हूँ।
यदि इस पर कुछ सहायता मिल जाये तो बड़ा आभार होगा।
पुनः आपका और सभी गुणीजनों का प्रतिक्रिया के लिए आभार।
आदरणीय आशीष जी, गजल का अच्छा प्रयास है, बधाई. बाक़ी मंच के आदरणीय उस्ताज़ समर कबीर साहब ने जो अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रया दी है, उससे ग़ज़ल को संवारने का प्रयास करें. सादर.
आदरणीय आशीष जी, गजल का अच्छा प्रयास है, बधाई. बाक़ी मंच के आदरणीय उस्ताज़ समर कबीर साहब ने जो अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रया दी है, उससे ग़ज़ल को संवारने का प्रयास करें. सादर.
आ. आशीष जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई । आ. भाई समर जी की बात का संज्ञान लें ।
आदरणीय आशीष जी अच्छी गजल कही आपने कामयाब कोशिश के लिए बहुत बहुत बधाई
जनाब आशीष कुमार 'चंदन' जी आदाब,पहली बार आपकी ग़ज़ल से रूबरू हो रहा हूँ ।
बह्र के हिसाब से आपकी ग़ज़ल ठीक है,लेकिन क़वाफ़ी के हिसाब से अभी आपको ग़ज़ल पर और समय देना होगा ।
'
दुश्मनी को भूल जाऊँ दोस्ती की बात तो हो
नफरतों को छोड़ भी दूँ इश्क़ के हालात तो हो'
मतले के सानी मिसरे में 'हालात' शब्द बहुवचन है इस कारण से रदीफ़ 'हो' कि बजाय "हों" हो रही है ।
' पर उधर भी तो पिघलता एक भी जज्बात तो हो'
इस मिसरे में भी 'जज़्बात' शब्द बहुवचन है,तो इस कारण से रदीफ़ 'हो' की जगह "हों" हो रही है ।
जिंदगी में छा गया है अब अमावस सा अँधेरा'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है "अमावस सा"
जीतना मुमकिन नहीं है फिर चलो अब मात तो हो'
इस मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर है,"मुमकिन नहीं"
बाक़ी इस प्रयास पर बधाई स्वीकार करें ।
'
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