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क्या पता चाँद रोशन रहे ना रहे
कल ये’ चूड़ी ये’ कंगन रहे ना रहे।
भीग जा मेरे’ नैनों की’ बरसात में
क्या पता कल ये’ सावन रहे ना रहे।
छू के’ देखूँ जरा अनछुए फूल को
क्या पता कल ये’ मधुबन रहे ना रहे।
आ मिला लें’ अधर से अधर आज हम
क्या पता कल ये’ यौवन रहे ना रहे।
तेरी’ साँसों में’ घुल के महक जाऊँ’ मैं
क्या पता कल ये’ चन्दन रहे ना रहे।
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स्वरचित एवं मौलिक
आशीष कुमार "चन्दन"
Comment
वाह जी खूब ग़ज़ल कही है..बधाई
आदरणीय आशीष कुमार जी, आदाब. ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, दाद के साथ बधाई स्वीकार करें. सादर
आदरणीय समर कबीर जी बहुत बहुत आभार ।
जनाब आशीष कुमार "चन्दन" जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
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