1. खोये स्वप्न ...
तमाम रात
मेरे साथ था
एक स्वप्न
भोर होते ही
वो स्वप्न
स्वप्न सा हो गया
मैं
देर तक
पलकों की दहलीज़
बुहारती रही
खोये स्वप्न को
ढूंढने के लिए
...........................
2. मन्नत ....
देर तक
रुका रहा
मेरे घर की छत पर
वो आसमान से टूटा
मन्नत का तारा
मेरे ज़ह्न में
काँपता रहा
देर तक उसका ख़्याल
मेरी आँखों के कटोरों में
कोई अपने अक्स की
भीख डाल गया
टूटा तारा चला गया
मेरी मन्नत मेरी
झोली में डाल के
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय vijay nikore जी, ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज जी, ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। हर बार की तरह उम्दा सृजन। बधाई
वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर
आदरणीय Tasdiq Ahmed Khan साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब। ... सृजन को आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है। मन्नत के तारे से मेरा अभिप्राय आसमान का वो टूटा तारा जो हर किसी की मुराद हो पूरा करता है। ऐसा ही कुछ भाव था इसमें ... सादर।
आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीया रक्षिता सिंह जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।
जनाब सुशील सरना साहिब , एक और ज़बरदस्त कविता हुई है, मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
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