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1. खोये स्वप्न .../2. मन्नत   ....

1. खोये स्वप्न ...

तमाम रात
मेरे साथ था
एक स्वप्न

भोर होते ही
वो स्वप्न
स्वप्न सा हो गया

मैं
देर तक
पलकों की दहलीज़
बुहारती रही
खोये स्वप्न को
ढूंढने के लिए

...........................

2. मन्नत   ....

देर तक
रुका रहा
मेरे घर की छत पर
वो आसमान से टूटा
मन्नत का तारा
मेरे ज़ह्न में
काँपता रहा
देर तक उसका ख़्याल
मेरी आँखों के कटोरों में
कोई अपने अक्स की
भीख डाल गया
टूटा तारा चला गया
मेरी मन्नत मेरी
झोली में डाल के

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on February 4, 2018 at 9:51pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी रचना है,बधाई स्वीकार करें ।

ये 'मन्नत का तारा' क्या है?

Comment by narendrasinh chauhan on February 4, 2018 at 8:49pm
आदरणिय , खुब सुन्दर रचना..
Comment by रक्षिता सिंह on February 4, 2018 at 5:14pm

आदरणीय सुशील जी,

स्वप्न की वास्विकता को दर्शाती बेहतरीन  पंक्तियाँ....

बहुत बहुत बधाई।

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