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1. खोये स्वप्न .../2. मन्नत   ....

1. खोये स्वप्न ...

तमाम रात
मेरे साथ था
एक स्वप्न

भोर होते ही
वो स्वप्न
स्वप्न सा हो गया

मैं
देर तक
पलकों की दहलीज़
बुहारती रही
खोये स्वप्न को
ढूंढने के लिए

...........................

2. मन्नत   ....

देर तक
रुका रहा
मेरे घर की छत पर
वो आसमान से टूटा
मन्नत का तारा
मेरे ज़ह्न में
काँपता रहा
देर तक उसका ख़्याल
मेरी आँखों के कटोरों में
कोई अपने अक्स की
भीख डाल गया
टूटा तारा चला गया
मेरी मन्नत मेरी
झोली में डाल के

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on February 11, 2018 at 3:16pm

आदरणीय   vijay nikore   जी,  ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 8, 2018 at 6:52pm

आदरणीय   सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'   जी,  ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 8, 2018 at 6:52pm

आदरणीय   बृजेश कुमार 'ब्रज  जी,  ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 7:11pm

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। हर बार की तरह उम्दा सृजन। बधाई

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 7, 2018 at 6:48pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर 

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2018 at 3:03pm

आदरणीय  Tasdiq Ahmed Khan साहिब, आदाब ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2018 at 3:03pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब। ... सृजन को आपकी मनोहारी प्रशंसा का आभारी है। मन्नत के तारे से मेरा अभिप्राय आसमान का वो टूटा तारा जो हर किसी की मुराद हो पूरा करता है। ऐसा ही कुछ भाव था इसमें ... सादर।

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2018 at 3:00pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on February 5, 2018 at 3:00pm

आदरणीया रक्षिता सिंह जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 5, 2018 at 9:34am

जनाब सुशील सरना साहिब , एक और ज़बरदस्त कविता हुई है, मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

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