कहीं पे चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ होंगी ! | |
अगर हाकिम के आगे भूख और लाचारियाँ होंगी !! | |
अगर हर दिल में चाहत हो शराफ़त हो सदाक़त हो ! | |
मुहब्बत का चमन होगा ख़ुशी की क्यारियाँ होंगी !! | |
किसी को शौक़ यूँ होता नहीं ग़ुरबत में जीने का ! | |
यक़ीनन सामने उसके बड़ी दुश्वारियाँ होंगी !! | |
ये होली ईद कहती है भला कब अपने हांथों में ! | |
वफ़ा का रंग होगा प्यार की पिचकारियाँ होंगी !! | |
न छोड़ो ये समझ के आग अब ठंडी होगी ! | |
ये मुम्किन है दबी कुछ राख में चिंगारियाँ होंगी !! | |
मुक़ाबिल में है आया एक जुगनू आज सूरज के ! | |
यक़ीनन पास उसके भी बड़ी तैयारियाँ होंगी !! | |
सुख़नवर का ये आंगन है रज़ा शेरों की ख़ुश्बू है ! | |
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Comment
shandaar jaandar bajandaar gajal ke liye badhai
आपकी ग़ज़ल पर दिल से दाद कह रहा हूँ.
मुक़ाबिल में है आया एक जुगनू आज सूरज के!
यक़ीनन पास उसके भी बड़ी तैयारियाँ होंगी.... रज़ा साहब इस शेर पर विशेष रूप से बधाई.
shukriya ...coontee mukerji ji prayas yahi hota hai ki kuch achcha kahe...aaplogo ke sneh se takat milti hai..
मुक़ाबिल में है आया एक जुगनू आज सूरज के! यक़ीनन पास उसके भी बड़ी तैयारियाँ होंगी
बहुत बड़ी बात कही है आपने सलीम जी .हर गजल में एक मायने छिपी है.बधाई स्वीकार करें .कुन्ती .
shukriya Kewal Prasad ji
डॉ. सूर्या बाली "सूरज" dili shukriya ,,,ji sahab vahana par ''hui hogi '' hai yad dilane ke lie dil se duaa
कहीं पे चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ होंगी !
अगर हाकिम के आगे भूख और लाचारियाँ होंगी ! खूबसूरत मतला हुआ है
अगर हर दिल में चाहत हो शराफ़त हो सदाक़त हो!
मुहब्बत का चमन होगा ख़ुशी की क्यारियाँ होंगी ! जी बेशक ! बेहद उम्दा ख़याल
किसी को शौक़ यूँ होता नहीं ग़ुरबत में जीने का!
यक़ीनन सामने उसके बड़ी मज़बूरियां होंगी ! वाह वाह जनाब क्या कहने !
ये होली ईद कहती है भला कब अपने हांथों में !
वफ़ा का रंग होगा प्यार की पिचकारियाँ होंगी ! अच्छा है
न छोड़ो ये समझ के आग अब ठंडी होगी !
ये मुम्किन है दबी कुछ राख में चिंगारियाँ होंगी! ऊला मिसरा कुछ खटक रहा है एक बार देख लें।शेर लाजवाब है
मुक़ाबिल में है आया एक जुगनू आज सूरज के!
यक़ीनन पास उसके भी बड़ी तैयारियाँ होंगी ! हासिले ग़ज़ल शेर ...बेहद खूबसूरत
सुख़नवर का ये आंगन है रज़ा शेरों की ख़ुश्बू !
ग़ज़ल और गीत नज़्मों की यहाँ फुलवारियाँ होंगी ! बहुत उम्दा!
सलीम साहब एक उम्दा और मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल करें !!
आदरणीय, सलीम रजा जी! बेहद सुन्दर गजल।.वाह क्या बात है..’मुक़ाबिल में है आया एक जुगनू आज सूरज के! यक़ीनन पास उसके भी बड़ी तैयारियाँ होंगी !’ बहुत बहुत हार्दिक बधाई स्वीकारें...। सादर,
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