For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुकद्दर का घोड़ा 122, 122 22 रदीफ के साथ (ग़ज़ल,छोटी बहर पर एक प्रयास )

122, 122 22 (ग़ज़ल)

जमाया हथौड़ा रब्बा 

कहीं का न छोड़ा रब्बा 

बना काँच का था नाज़ुक 

मुकद्दर का घोड़ा रब्बा 

हवा में उड़ाया उसने 

जतन से था जोड़ा रब्बा

तबाही का आलम उसने 

मेरी और मोड़ा रब्बा  

बेरह्मी से दिल को यूँ 

कई बार तोड़ा रब्बा  

रगों से लहू को मेरे

बराबर निचोड़ा रब्बा

चली थी  कहाँ मैं देखो   

कहाँ ला के छोड़ा रब्बा

मुकद्दर पे ताना कैसे

कसे मन निगोड़ा रब्बा 

लगे ए  'राज' तेरा ये 

कहानी का रोड़ा रब्बा 

******************** 

Views: 1062

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr.Ajay Khare on February 8, 2013 at 11:33am

rajesh madam gagar me sagar badhai


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 8:59am

आदरणीय वीनस जी आपने इस ग़ज़ल पर अपने बहुमूल्य विचार रखे दिल से आभारी हूँ आपकी बात मैं समझ गई हूँ किन्तु लिखने से पहले  मैंने इस पर कई रदीफ आज्माये पर जमे नही समझ नही आ रहा था क्या करूँ सो ऎसे ही पेश कर दी सनाद दोष दो शेर में आ रहा है जो दूर् कर लूँगी पर रदीफ का कोई सुझाव दीजिये 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 8:54am

आदरणीय विजय निकोर जी  उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 8:53am

आदरणीय सौरभ जी उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 8:52am

आदरणीय गणेश जी आपका दिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 8:50am

आदरणीय सलीम रज़ा जी आपने खयाल को सराहा आपका दिल से शुक्रिया जैसा कि छोटी बहर पर मेरा प्रथम प्रयास था आप सब लोगों कि प्रतिक्रिया से कुछ कमियाँ पता चली सभी का तहे दिल से आभार सीखने सिखाने कि यही प्रक्रिया तो ओबीओ को विशिष्ट बनाती है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 8:44am

प्रिय  महीमा श्री जी आपका  दिल से आभार आपको ग़ज़ल पसंद आई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 8:43am

प्रिय प्राची जी आपका शेर दर शेर विश्लेषण पढ़ कर बहुत अच्छा लगा आपका दिल से आभार 

Comment by vijay nikore on February 8, 2013 at 7:48am

आदरणीया राजेश जी,

आपकी यह गज़ल बहुत कुछ कह गई।

आपको हार्दिक बधा॥

विजय निकोर
 

Comment by वीनस केसरी on February 7, 2013 at 11:59pm

आदरणीया
मन आनंदित है ...

वाह वाह
ऐसी छोटी बहर पर जब ग़ज़ल पढ़ने को मिलाती है तो वाकई दिल खुश हो जाता है ...
छोटी बहर के अपने खतरे होते हैं मगर आपने बहुत खूबसूरती से निभाया है ... बस एक बात है कि रदीफ़ की कमी खाल रही है और इसी कारण ऐसा महसूस होता है कि बात पूरी नहीं हुई है .... अगर इस ग़ज़ल में रदीफ़ जोड़ दी जाये तो ग़ज़ल का रंग ही कुछ और होगा
मेरी ओर से ढेरो दाद क़ुबूल करें

मतले में सिनाद का दोष भी आ रहा है उस पर भी गौर फरमाएं ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service