For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैंने तो सिर्फ एक ही रंग माँगा था चटक रंग तुम्हारे प्यार का और तुम पूरा इंद्र धनुष ही उठा लाये कैसे सम्भालूँगी  ये सब और वो दो बांहों के घेरे में समा  गई और पटाक्षेप हो गया । ,सुरभि लगातार आँखों से आंसू पोंछ रही थी की पीछे से आवाज आई कितनी बार कहा सुभी ये ऊट  पटांग  सीरियल मत देखो फिर रोती  रहती हो और भी तो कुछ कर सकती हो मन बहलाने के लिए ,देखो आज मेरी मीटिंग है देर से लौटूंगा अपना और रोहित का ख्याल रखना ,सुरभि ने कहा "ठीक है"  और सब कुछ शांत हो गया |इतने में किसी ने हिलाया तो जैसे उसकी तन्द्रा टूटी तो सुना, क्या ठीक है? माँ कहाँ खो गई ?कब से कह रहा हूँ ये सास बहु के सीरियल देख कर अपना दिमाग  ख़राब मत किया करो  आप क्या सोच रही थी  ,देखो आज आफिस  के बाद मेरे एक फ्रेंड की वेडिंग एनिव्र्सरी है श्रुति भी स्कूल के बाद मुझे ऑफिस में मिल जायेगी पार्टी में देर हो सकती है गौरव स्कूल से आये तो बता देना ,सुरभि  "ठीक है" कह कर  कुछ देर तक सोचती रही  और जाने कब आँख लग गई तीन बजे गौरव स्कूल से आया बैग एक साइड पटक कर बोला दादी मैं पार्क में खेलने जा रहा हूँ ज्यादा टीवी मत देखना आप फिर रोती  हो  ,सुरभि बोली "ठीक है "एक बार फिर वो अतीत की धुंध  में गुम  हो गई। 

कुछ देर बाद आँखें खोली तो सामने लक्ष्मी (काम वालीको खड़ा पाया वो कह रही थी  माजी आप ठीक तो हैं ,दरवाजा भी खुल पड़ा है बाबा कहाँ है सुरभि ने कहा ठीक हूँ बाबा खेलने गया है ।लक्ष्मी किचेन में चली गई तो उसने पास में बैठी हुई लक्ष्मी की बेटी जो महज या सात साल की होगी को कोई भी सी डी लगाने को बोला ,सी डी प्ले होने लगी उसे देखकर  एक बार फिर सुरभि अतीत की सीढियां उतर  रही है रोहित  ढाई तीन साल का है सामने लान में भागते हुए गिर पड़ा सुरभि उसकी चीख सुनकर दौड़ पड़ी साडी पैर के नीचे फंसी और वो धडाम से गिरी |

उसे क्या पता था वो दौड़ उसके जीवन की अंतिम दौड़ थी ,पास बैठी हुई लक्ष्मी की बेटी ने सुरभि को आँखें पोंछते देखा तो तुरंत  खड़ी हो गई  बोली "दादी मत देखो", आप दुखी होती हो शायद आपका मन नहीं लग रहा चलो मैं आपको बाहर घुमा के लाती हूँ और वो नन्ही बच्ची व्हील चेयर को धकेलती हुई बाहर लान में ले गई मौसम बहुत सुहाना था वो अचानक ख़ुशी से उछलती हुई बोली दादी देखो इंद्र धनुष निकला है आसमान में ,सुरभि ने गर्दन उठाकर देखा तो एक मुस्कान उसके अधरों पर लौट आई सोचने लगी देखो आज उसका एक रंग जो वो  कब से मांगती थी जमीन पर उतर कर उसकी व्हील चेयर पकडे खड़ा है  

Views: 968

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2013 at 2:54pm

नीलिमा जी खेद है इस पोस्ट पर बहुत वक़्त के बाद आना हुआ ,आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2013 at 2:53pm

शुभ्रांशु पाण्डेय जी हार्दिक आभार 

Comment by Neelima Sharma Nivia on February 17, 2013 at 5:27pm

दिल को छूती हुई कहानी .

Comment by Shubhranshu Pandey on February 13, 2013 at 1:19pm

कई बार लिखे शब्दों को डिलीट कर चुका हूँ. क्या लिखुं समझ में नहीं आ रहा है........

अकेलेपन मे कभी कभी ये बुद्धुबक्सा किसी के होने का अह्सास कराता है. 

एक मर्मस्पर्शी कहानी...

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 8, 2013 at 9:03am

आदरणीय रविकर भाई हार्दिक आभार आपका ओबीओ से आपने मेरी रचना चर्चा में शामिल की |

Comment by रविकर on February 8, 2013 at 8:45am

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी ।।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2013 at 10:59pm

बहुत दिनों के बाद कोई भावभरी कथा सामने आयी है, आदरणीया.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 7, 2013 at 6:33pm

आदरणीय सौरभ पांडेय जी ये सच है कि किसी भी रचना पर आपके बहुमूल्य विचार या सुझाव का इंतज़ार रहता है उसके बाद ही अपने लेखन को सार्थक समझती हूँ इस कहानी पर आपकी प्रतिक्रिया से आश्वस्त हुई कि कहानी अपना संदेश देने में समर्थ है हार्दिक आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 7, 2013 at 6:28pm

आदरणीय मीना पाठक जी कहानी के मर्म ने आपके दिल को छुआ मेरा लेखन सार्थक हुआ हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2013 at 4:58pm

आदरणीया राजेश कुमारीजी.. . स्वीकार कर रहा हूँ, इस कथा को मैंने सुबह ही पढ़ लिया था... .  फिर देर तक इसके भाव में डूबा रहा. निश्शब्द... ..

भाव जब खूब सघन हो जायें तो स्वर-शब्द कमजोर पड़ जाते हैं. आपकी वैचारिकता जिस तरह से प्रस्तुत भावना के साथ गुत्थमगुत्था हो कर निस्सृत हुई है, वह चकित तो करती ही है, आपके रचनाकर्म पर गर्व भी हो रहा है. आगे कुछ नहीं कहना. संभव भी नहीं.

आदरणीया, सादर प्रणाम.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
12 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service