For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हंत! व्यथित है चित्रकारी (क्षणिका)

तुम्हारी झुकी पलकें जो देखी
तो शृंगार रस में डुबोकर तूलिका,
मन में कोई छवि बना ली
कि यकायक तुमने पलकें उठा ली ,
भाव बदला, रस बदला
आंखों में सुर्ख डोरों को देख
तूलिका का रंग बदला
सब समझ गया मैं रुप का पुजारी
जिसके अंग-अंग पर तूलिका चलती थी
तू नहीं रही अब वो नारी
नही बचा तुझमें स्पंदन
हंत ! व्यथित है चित्रकारी
**********************

Views: 709

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2013 at 7:56pm

प्रिय संदीप आप को रचना के मर्म ने छुआ ,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को नव ऊर्जा प्राप्त हुई  दिल से आभार 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 7:39pm

क्या बात है क्या ही कलाकारी है

जो भाव भंगिमा उकेरी है शब्दों से गहरी है

कल और आज की तस्वीर यही है

जिसे समझना है समझे नहीं तो चित्रकारी तो हो चुकी है

बधाई हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2013 at 7:12pm

राजेश कुमार झा जी आपको रचना के मर्म ने छुआ दिल से आभारी हूँ 

Comment by राजेश 'मृदु' on February 5, 2013 at 6:46pm

उफ !!!!!! इतने सघन भाव, बहुत बधाई आपको इस बेहतरीन प्रस्‍तुति पर, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 4, 2013 at 8:44pm

हार्दिक आभार आदरणीय गणेश जी मेरी रचना के भावों को आत्मासात कर अपने अनुमोदन से मेरे लेखन को सार्थकता प्रदान की दिल से आभारी हूँ  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2013 at 8:26pm

//यदि वही चित्रकार उस बदले हुए रुप के मूल तक जाए उसमें वही विश्वास वही आकर्षण वही प्रेम फिर से अंकुरित करे तो निःसंदेह उसको वही भाव वही स्वरूप  नजर आयेंगे उसके  प्रतिमान में ,//

यही किसी रचनाकार की शब्द साधना है, आदरणीया. यही साधना किसी भावुक को संप्रेषणीय करते हैं.  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2013 at 8:14pm

शब्द, शब्दों का क्रम, शब्दों में निहित भाव, भावों से निर्मित एक खुबसूरत कृति, वाह वाह, बहुत खूब, शानदार अभिव्यक्ति आदरणीया, बधाई स्वीकार करें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 4, 2013 at 7:37pm

हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी मेरे शब्द भावों में मूल तक प्रवेश करने के लिए और मर्म तक पँहुचने के लिए| सही कहा चित्रकार जिस खूबसूरती पर अपनी तूलिका चलाना चाहता है उसको उसका रुप बदलना खल जाता है वो आहत होता है जैसे किकभी कभी किसी लेखक के शब्द रूठ जाते हैं जिस तरह चाहता है वो अपने भाव ढाल नही पाता तो छटपटाहट होती है,पर क्यूँ?? यदि वही चित्रकार उस बदले हुए रुप के मूल तक जाए उसमें वही विश्वास वही आकर्षण वही प्रेम फिर से अंकुरित करे तो निःसंदेह उसको वही भाव वही स्वरूप  नजर आयेंगे उसके  प्रतिमान में ,बस यही कहने कि चेष्टा की  है|      


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2013 at 6:51pm

वाह !

शृंगार चाहना के आगे दम भरती है. कि, वही आँखों के डोरे सुर्ख़ भी रखती है. चाहना चाहे जो हो, पेट की या देह की !

अपने वायव्य में चाहना चाहे जो रच ले.. किन्तु, बिम्ब का स्वयं बोल उठना बर्दाश्त नहीं होता. चितेरे की संवेदना आहत होती है. ..

बहुत सुन्दर किन्तु अवगुंठितभावों को आपने स्वर दिया है.  सादर बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 4, 2013 at 5:30pm

हार्दिक आभार प्रिय प्राची जी ,हंत व्यथित चित्रकारी अविश्वास व असुरक्षा इतनी वयाप्त हो गई आज एक नारी के मन में कि वो अब एक चित्रकार कि भावना को भी शक़ के दायरे में रख कर देखती है स्पंदन हीन हो चुकी हैं सब उसकी सम्वेद्नाये ,यह देख् कर एक कला एक कलाकार कितने  व्यथित है बस यही मर्म है इन्हीं   उद्द्गारो को साझा किया है इस  क्षणिका में पुनः आभारी हूँ कि मर्म ने आपको छुआ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
12 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
14 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service