यहाँ तू नहीं ये कमी तो रहेगी
उदासी जहन में जमी तो रहेगी
हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर
वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी
नहीं जब तलक कोई साहिल मिलेगा
मुहब्बत की कश्ती थमी तो रहेगी
करे जो तू शिरकत जरा इस चमन में
हवा ये सुगन्धित रमी तो रहेगी
भले मौन हो जाए तेरा नसीबा
कहीं ना कहीं सरग़मी तो रहेगी
वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ
रगो में झलक पश्चिमी तो रहेगी
लिखे ना लिखे "राज" तुझ पे ग़ज़ल वो
फ़कत दीद की मरहमी तो रहेगी
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Comment
सर्व प्रथम तो आपका स्वागत है गीतिका जी ,तहे दिल से शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसंद आई
वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ रगो में झलक पश्चिमी तो रहेगी
बहुत खूब!
विजय मिश्र जी शेर के मर्म ने आपको छुआ आपको पसंद आया तहे दिल से शुक्रिया
" वफ़ा क्या करोगे मैं सब जानती हूँ
रगो में झलक पश्चिमी तो रहेगी | "
ये बंद हटके है और ईमानदारी से आज की बात कहता है . अच्छा लगा .
राम शिरोमणि जी आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभारी हूँ |
बहुत सुन्दर ग़ज़ल मैम..बधाई स्वीकारें...
आदरणीय अशोक रक्ताले जी दिली आभार स्वीकारे आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी कलम को संबल मिला
हटेगी नहीं जब ये कुहरे की चादर
वहाँ बस्तियों में नमी तो रहेगी ................बहुत खूब!
आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, सुन्दर गजल सभी अशार बढ़िया है दाद कुबुलें.सादर.
प्रिय आरती शर्मा जी तहे दिल से शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसंद आई
प्रिय प्राची जी तहे दिल से शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसंद आई
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