धैर्य रखो मत हो विकल,सुन लो मेरी बात!
अल्प दिवस हैं कष्ट के ,होगी स्वर्ण प्रभात!!
लोभ कपट को त्यागकर,मीठी वाणी बोल!!
यह जीवन का सार है,सहज वृत्ति अनमोल!!
अपनापन गोठिल जहाँ,वहाँ परस्पर द्वंद !
पापा कहते थे वहाँ ,बढ़ते दुःख के फंद!!
भ्रष्ट आचरण त्यागकर,करना मधुरिम बात !
होगी वर्षा नेह की,प्यार भरी सौगात !!
पापा कहते थे सदा,सुन लो मेरे लाल!
जीवन में होना सफल ,बहके कदम सँभाल!!
सत्कर्मों से ही सदा,होता जग में नाम!
पापा की यह सीख थी,लो विवेक से काम!!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
gothil ....? naya suna hai ...kripya kar artha bhi bataye
बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई राजेश जी////////// सादर
इस अमूल्य सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ जी,,,कृपा कर एक बार और देख लें आदरणीय कही कोई गलती तो नहीं ............ सादर
पापा कहते थे.. प्रभात कभी नहीं होगी.. यह हर हाल में होगा..
जय हो..
पापा की सीख को सुंदर तरीके से आपने प्रस्तुत किया है रामजी, आपको हार्दिक बधाई
बहुत बहुत आभार भाई जीतेन्द्र जी। … सादर
पिता की सीख, हमेशा गंभीरता लिए होती है, हर एक दोहा जीवन की सफलता के लिए सार्थक सन्देश देता हुआ, बधाई स्वीकारें आदरणीय राम भाई
उत्साह वर्धन हेतु आभार आदरणीय गिरिराज जी,आप सही कह रहे है मुझसे गलती हुई है । .. सादर
उत्साह वर्धन हेतु आभार आदरणीया मीना जी। .. सादर
मेरा प्रयास पर उत्साह वर्धन हेतु आभार आदरणीय आशुतोष जी। .. सादर
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