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गज़ल -13( फिर भी नादान कलेजे में ज़हर रखता है)

2122 1122 1122 22/112

छोड़ जाएगा यहीं सब ये ख़बर रखता है
फिर भी दौलत पे वो मर मर के नज़र रखता है//१

ज़िन्दगी प्यार के अमरित से ही होती है रवां
फिर भी नादान कलेजे में ज़हर रखता है //२

कितना मज़बूर है वो रोड पे भूखा बच्चा
एक रोटी के लिए कदमों में सर रखता है//३

आदमी कितना अकेला है भरी दुनिया में
कहने को भीड़ भरे शह्र में घर रखता है//४

पहले शैतान से डरने की ख़बर आती थी
आज इंसान ही इंसान से डर रखता है//५

-- क़मर जौनपुरी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by TEJ VEER SINGH on December 5, 2018 at 2:28pm

हार्दिक बधाई आदरणीय क़मर जौनपुरी जी।बेहतरीन गज़ल।

पहले शैतान से डरने की ख़बर आती थी
आज इंसान ही इंसान से डर रखता है//५

Comment by Samar kabeer on December 5, 2018 at 10:58am

'  फिर क्यों नादान मुहब्बत में कसर रखता है"

ठीक है ।

Comment by क़मर जौनपुरी on December 5, 2018 at 12:37am

जनाबे मोहतरम यह मिसरा ठीक रहेगा ?

"फिर क्यों नादान मुहब्बत में कसर रखता है"

Comment by क़मर जौनपुरी on December 5, 2018 at 12:32am

बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहब और राज़ साहब इस्लाह के लिए। उस मिसरे को में दुरुस्त करने की कोशिश करता हूँ।

जनाब लक्ष्मण धामी मुसाफिर साहब का बहुत बहुत शुक्रिया हौसला आफ़ज़ाई के लिए।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2018 at 11:46am

आ. कमर जौनपुरी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on December 4, 2018 at 11:18am

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

दूसरे शैर में क़ाफ़िया दोष है,सहीह शब्द है "ज़ह्र" देखियेगा ।

Comment by राज़ नवादवी on December 3, 2018 at 7:24pm

आदरणीय क़मर जौनपुरी साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे हार्दिक बधाई. ज़हर लफ्ज़ देख लीजिएगा, दरअस्ल ज़ह्र है. सादर. 

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