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छोड़ जाएगा यहीं सब ये ख़बर रखता है
फिर भी दौलत पे वो मर मर के नज़र रखता है//१
ज़िन्दगी प्यार के अमरित से ही होती है रवां
फिर भी नादान कलेजे में ज़हर रखता है //२
कितना मज़बूर है वो रोड पे भूखा बच्चा
एक रोटी के लिए कदमों में सर रखता है//३
आदमी कितना अकेला है भरी दुनिया में
कहने को भीड़ भरे शह्र में घर रखता है//४
पहले शैतान से डरने की ख़बर आती थी
आज इंसान ही इंसान से डर रखता है//५
-- क़मर जौनपुरी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय क़मर जौनपुरी जी।बेहतरीन गज़ल।
पहले शैतान से डरने की ख़बर आती थी
आज इंसान ही इंसान से डर रखता है//५
' फिर क्यों नादान मुहब्बत में कसर रखता है"
ठीक है ।
जनाबे मोहतरम यह मिसरा ठीक रहेगा ?
"फिर क्यों नादान मुहब्बत में कसर रखता है"
बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहब और राज़ साहब इस्लाह के लिए। उस मिसरे को में दुरुस्त करने की कोशिश करता हूँ।
जनाब लक्ष्मण धामी मुसाफिर साहब का बहुत बहुत शुक्रिया हौसला आफ़ज़ाई के लिए।
आ. कमर जौनपुरी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे शैर में क़ाफ़िया दोष है,सहीह शब्द है "ज़ह्र" देखियेगा ।
आदरणीय क़मर जौनपुरी साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे हार्दिक बधाई. ज़हर लफ्ज़ देख लीजिएगा, दरअस्ल ज़ह्र है. सादर.
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