हर चूहा चालाक है, ढूँढे सही जहाज
डगमग दिखा जहाज ग़र, कूद भगे बिन लाज
सजी हाट में घूमती, बटमारों की जात
माल-लूट के पूर्व ही, करती लत्तमलात
नाटक के इस मंच पर, पीटे जोकर ढोल
उलटबासियाँ चेंपता, चीखे - ’खोला पोल’
भौंरों को उम्मीद थी, खिलें उपट के फूल
पर वो आँधी चल पड़ी, धूल धूल बस धूल
दर्शक भौंचक हो रहे, देख पात्र के टेक
उठा-पटक तो मंच पर, पर्दा पीछे एक
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-सौरभ
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
प्रस्तुति को अनुमोदित करने केलिए सादर धन्यवाद आदरणीया प्राचीजी.
उठा पटक तो मंच पर, पीछे पर्दा एक न हो कर उठा पटक तो मंच पर, पर्दा पीछे एक सही पद है. यानि, भले मंच पर अर्थात सबके सामने सभी उठा-पटक तो करते दीखते हों, पर्दे के पीछे विचारों से सभी एक ही हैं.
सादर
बहुत सामयिक मजेदार दोहावली प्रस्तुत की है आ० सौरभ जी
कहीं चूहे जहाज से भाग रहे हैं, कहीं जोकर पोल खोल रहे हैं, और आख़िरी वाले का तो क्या कहना...बिलकुल सही कहा "उठा पटक तो मंच पर, पीछे पर्दा एक"
इस सुन्दर इंगितों के माध्यम से यथा स्थिति दर्शाती दोहावली के लिए हार्दिक बधाई
प्रस्तुति पर समय देने के लिए आप सबों को मेरा हार्दिक धन्यवाद
शुभ-शुभ
वाह - वाह.... हर दोहा लाजवाब सर !!!!
हर चूहा चालाक है, ढूँढे सही जहाज
डगमग दिखा जहाज ग़र, कूद भगे बिन लाज
सजी हाट में घूमती, बटमारों की जात
माल-लूट के पूर्व ही, करती लत्तमलात
नाटक के इस मंच पर, पीटे जोकर ढोल
उलटबासियाँ चेंपता, चीखे - ’खोला पोल’
भौंरों को उम्मीद थी, खिलें उपट के फूल
पर वो आँधी चल पड़ी, धूल धूल बस धूल
दर्शक भौंचक हो रहे, देख पात्र के टेक
उठा-पटक तो मंच पर, पर्दा पीछे एक
bahut hi badhiya prastuti, sans thamjaye vachan karte huye...Saadar
आप सुधीजनों का हृदय की गहराइयों से धन्यवाद.
आदरणीय सौरभ भाईजी,
चुनाव के समय सभी राष्ट्रीय दल और छुटभैये नेताओं की पोल खोलती इस व्यंग रचना पर हार्दिक बधाई ।
लोटे बिन पेंदी हुए, नेता भये गिरगिट।
पाँच बरस मस्ती किये, चुनाव समय में फिट ॥
आदरणीय सौरभ जी, चुनावी घमासान की इस रेलम-पेल को खूबसूरती से प्रदर्शित कर रहे हैं आपके ये दोहे ..... आपके इन दोहों से प्रेरित होकर इसमें एक दोहा मैं भी लिखने की खता कर रहा हूँ सादर ......
भोला मतदाता बड़ा, छला गया हर बार
नगर कटे मीठी छुरी, गाँव पड़े लठमार
दोहे सामयिक हैं. इन्हें ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर के तौर पर साझा किया हूँ. सामाजिक होने के कारण प्रभावित होना लाजिमी ही है. लेकिन किसी व्यक्ति विशेष या किसी राजनीतिक दल विशेष के खिलाफ़ इन्हें उद्बोधन न समझा जाय.
इस हिसाब से आप सभीका अनुमोदन आश्वस्तकारी है.
सादर धन्यवाद
दर्शक भौंचक हो रहे, देख पात्र के टेक
उठा-पटक तो मंच पर, पर्दा पीछे एक आदरनी य सौरभ सर ..बेहद रुचिकर दोहे ..वर्तमान संदभो पर बिलकुल फिट बैठते हैं ..ये दोहा तो मुझे बहद भाया ..तहे दिल बधायी और सादर प्रणाम के साथ
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