For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -तरही -2(उनके सोए हुए जज़्बात जगा भी न सकूँ )

(फाइलातुन -फइलातुन -फइलातुन -फइलुन /फेलुन)

आ गया हूँ वहाँ जिस जा से मैं जा भी न सकूँ |
मा सिवा उनके कहीं दिल को लगा भी न सकूँ |

इस तरह बैठे हैं वो फेर के आँखें मुझ से
उनके सोए हुए जज़्बात जगा भी न सकूँ |

मेरी महफ़िल में किसी ग़ैर को लाने वाले
दिल से मजबूर हूँ मैं तुझको जला भी न सकूँ |

फितरते तर्के महब्बत है तेरी यार मगर 
तेरी इस राय को मैं अपना बना भी न सकूँ |

इतना मजबूर भी मुझको न खुदा कर देना
अपने घर बार को इज़्ज़त से चला भी न सकूँ |

अश्क जो हैं मेरी आँखों में दिए दिलबर ने
मैं अगर चाहूं गिराना तो गिरा भी न सकूँ |

वो सितमगर सही तस्दीक़ मगर है दिलबर
उस की फ़ितरत मैं ज़माने को बता भी न सकूँ |

जिस जा -----जिस जगह

( मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 26, 2017 at 10:21pm

 जनाब राम बली साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया   

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 26, 2017 at 10:20pm

मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया   

Comment by रामबली गुप्ता on September 26, 2017 at 9:19pm
भाई तस्दीक अहमद खान जी एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक़बाद कुबूल करें।सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2017 at 9:08pm

आदरणीय तस्दीक भाई , बहुत बऍढ़िया गज़ल कही है , शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल कीजिये ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 26, 2017 at 10:28am
जनाब दिनेश कुमार साहिब ,आपकी गज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 26, 2017 at 10:27am
जनाब महेन्द्र कुमार साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 26, 2017 at 10:26am
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।मश्वरे का शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 25, 2017 at 10:26pm

जनाब आशुतोष साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया   

Comment by दिनेश कुमार on September 25, 2017 at 8:03pm
उम्दा ग़ज़ल हुई जनाब तस्दीक़ साहब। वाह वाह। सभी अशआर अच्छे लगे।
Comment by Mahendra Kumar on September 25, 2017 at 8:02pm

अच्छी ग़ज़ल है आ. तस्दीक़ जी. ये शेर विशेष रूप से पसन्द आये :

इतना मजबूर भी मुझको न खुदा कर देना 
अपने घर बार को इज़्ज़त से चला भी न सकूँ |

वो सितमगर सही तस्दीक़ मगर है दिलबर
उस की फ़ितरत मैं ज़माने को बता भी न सकूँ |

हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service