मैं तो उसकी पे ब पे अंगड़ाइयाँ गिनता रहा
और वो दामन की मेरे धज्जियाँ गिनता रहा
सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये
मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा
मेरे सीने पर सितम की मश्क़ वो करते रहे
और मैं मासूम दिल की किर्चियाँ गिनता रहा
काम जब कुछ भी नहीं था ओबीओ पर दोस्तो
'नूर' साहिब की मैं कूड़ेदानियाँ गिनता रहा
मेरी बर्बादी पे ख़ुश होकर अज़ीज़ों ने "समर"
कितनी छोड़ीं रात भर महताबियाँ गिनता रहा
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पे ब पे---लगातार
मश्क़---अभ्यास
'नूर'---निलेश नूर
म्हताबियाँ---आतिश बाज़ी
'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज' जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
मुहतरमा नीलम उपाध्याय जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
वाह खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय..
सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये
मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा..बेहतरीन
आदरणीय समर सर जी , इस ज़मीन में आपकी यह दूसरी ग़ज़ल भी बेहतरीन रही ,, मक़्ता बेहद पसंद आया
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की पेशकश के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय समर कबीर साहब ।
"सौ गुनह होते ही पूरे मारना था इसलिये
मैं भी इक शिशुपाल की बदकारियाँ गिनता रहा। "
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब आशीष श्रीवास्तव जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
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