कहीं बनाते हैं सड़क, कहीं तोड़ते शैल
करते श्रम वे रात दिन, बन कोल्हू के बैल।1।
नाले देते गन्ध हैं, उसमें इनकी पैठ
हवा प्रवेश न कर सके, पर ये जाएँ बैठ।2।
काम असम्भव बोलना, सम्भव नहीं जनाब
पलक झपकते शैल को, दें मुट्ठी में दाब।3।
चना चबेना साथ ले, थोड़ा और पिसान
निकलें वे परदेश को, पाले कुछ अरमान।4।
सुबह निकलते काम पर, घर से कोसों दूर
भूमि शयन हो शाम को, होकर श्रम से चूर।5।
ईंट जोड़ चूल्हा बनें, सुलगे जिसमें आग
तवा बना फिर फावड़ा, रोटी जल जल काग।6।
मिटे न खुद की भूख पर, नहीं प्रेम का ह्रास
दें रोटी कुछ श्वान को, बैठा था जो पास।7।
जाड़ा हो या ग्रीष्म हो, या फिर हो बरसात
नील गगन के ही तले, सदा कटे दिन रात।8।
आगे-आगे वे चलें, पीछे-पीछे रोग
साथ गरीबी भूख अरु, विपदाओं का योग।9।
धूप छाँव से बेखबर, श्रम करते भरपूर
टूटी चप्पल पाँव में, पर जाते अति दूर।10।
बूढ़ी आंँखें ताकतीं, हरपल उनकी राह
छोटू भी है आस में, करके द्वार निगाह।11।
बचपन में पचपन दिखें, यौवन बचा न शेष
क्षुधा खड़ी ले दीनता, भड़के मन में क्लेश।12।
ढाबा रेस्टोरेंट या, होटल फाइव स्टार
गिरवी बचपन हैं वहाँ, देखें दुनिया यार।13।
मालिक निशदिन मारता, बर्बरता के साथ
बरतन धोते सड़ गये, उनके दोनों हाथ।14।
शर्म हया कैसे बचे, श्रमिक अगर जो नार
नर प्रधानता हर जगह, शौचालय की मार।15।
पति उसका बीमार जो, फिर ऐसे हालात
सिर पर उसके ईंट हो, पीठ बँधा नवजात।16।
वह पत्थर है तोड़ती, मिटा सभी अब चाह
ज्येष्ठ दुपहरी धूप में, बच्चा रहा कराह।17।
गिद्ध भेड़िये की नजर, फ़टे वसन के पार
शिशु तरसे स्तनपान को, पर माता लाचार।18।
मात पिता दोनों श्रमिक, हालत से मजबूर
बिटिया हुई जवान अब, गिद्ध भेड़िये क्रूर।19।
बुरी स्वास्थ्य सेवा यहाँ, मन को करें निराश
श्रमिक अगर भर्ती हुआ, बाहर निकले लाश।20।
कहने को सरकार तो, करती बहुत उपाय
पर बातें सब कागजी, वंचित वो असहाय।21।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आपके इन दोहों पर आज पुन: आना अच्छा लगा । बधाई आदरणीय सुरेन्द्र जी।
आद0 बहन राजेश कुमारी जी सादर अभिवादन। दोहे पसन्द आये, लिखना सार्थक हुआ। आभार आपका उत्साह वर्धन के लिए
सभी दोहे एक से बढ़कर एक सटीक शिल्पबद्ध हुए .बहुत बहुत बधाई आद० सुरेन्द्र नाथ भैया |
आद0 तस्दीक अहमद जी सादर अभिवादन। दिल की गहराइयों से आभार आप सबका
आद0 विजय निकोर जी सादर नमन। बहुत बहुत आभार आपका
आद0 राम शिरोमणी पाठक जी सादर अभिवादन। शुक्रिया प्रतिक्रिया देने और प्रशंशा के लिए
आद0 आली जनाब समर कबीर साहब सादर प्रणाम। आपके सुझावों के अनुसार सुधार करता हूँ। बहुत बहुत आभार मात्रात्मक गलतियों की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए। इसीलिए आपकी प्रतिक्रिया का मुझे सदैव इंतजार रहता है।
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। उत्साहवर्धन के लिए कोटिश आभार
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,श्रमिक जीवन पर सुंदर दोहे हुए हैं ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
आपके दोहे अच्छे लगे। हार्दिक बधाई।
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