वजन : 2122 1212 22
वक़्त किसका गुलाम होता है
कब कहाँ किसके नाम होता है
कल तलक जिससे था गिला तुमको
आज किस्सा तमाम होता है
खास है जो मुआमला अपना
घर से निकला तो आम होता है
आज जग में सिया नहीं मिलती
औ’ किताबों में राम होता है
चिलमनो में मुहब्बतें कल थी
अब तमाशा ये आम होता है
अश्क कल दर्द के जो पीते थे
हाथ में आज जाम होता है
रास्ते तो करीब आ जाएं
दूर कितना मुकाम होता है
रंजिशे तुम जहां कहीं पालो
मौन उस पर विराम होता है
‘राज’ ख्वाबों में ही नहीं मिलती
रूबरू अब सलाम होता है
*******************************
Comment
आदरणीय गणेश जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपकी सराहना पाकर ग़ज़ल धन्य हो गई मेरे लेखन को सार्थकता मिली हार्दिक आभार |
आदरणीय योगराज जी आपको ग़ज़ल पसंद आई ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात है इस होंसला आफजाई के लिए तहे दिल से आभार आपका ,हाँ आपका मशविरा सर आँखों पर यदि हो सके तो ये शब्द रिप्लेस कर दें ---खास है जो मुआमला अपना ज्यादा सही लग रहा है सादर
एक वाक्य में कहे तो ……………. बस आनंद आ गया !!!
वाह आदरणीया वाह, रोज ऐसी ग़ज़ल नहीं मिलती, सभी अशआर एक से बढ़कर एक हैं, एक शेर जो एकदम सामयिक कोट करना चाहूँगा
…
चिलमनो में मुहब्बतें कल थी
अब तमाशा ये आम होता है
क्या बात , क्या बात , बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर .
हरीश उप्रेती जी आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत-बहुत शुक्रिया
प्रिय प्राची जी आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत-बहुत शुक्रिया इस होंसला आफजाई के लिए तहे दिल से आभार
सुमित नैथानी जी आपको ग़ज़ल पसंद आई बहुत शुक्रिया |
बढ़िया अशआर कहे हैं आदरणीया राजेश कुमारी जी बधाई स्वीकारें, एक छोटी सी सलाह:
.
//पास है जो मुआमला अपना
घर से निकला तो आम होता है// मिसरा-ए-ऊला में "पास" को "खास" कर के देखें.
आदरणीय राजेश जी सुन्दर गज़ल .....बधाई.....
आदरणीय राजेश जी
बहुत अच्छी गज़ल लिखी है.. सारे शेर पसंद आये ,
और ये दो तो खास पसंद आये ..बहुत बहुत बधाई
चिलमनो में मुहब्बतें कल थी
अब तमाशा ये आम होता है .................हर तरफ तमाशा ही तमाशा है :)))) सही कहा
रंजिशे तुम जहां कहीं पालो
मौन उस पर विराम होता है................बिलकुल सहमत हूँ..:)
सादर.
बहुत ही सुंदर गज़ल .............
अश्क कल दर्द के जो पीते थे
हाथ में आज जाम होता है ...सुंदर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online