ताप घृणा का शीतल करदे सीला माँ
इस ज्वाला को तू जल करदे सीला माँ
इस मन में मद दावानल सा फैला है
करुणा-नद की कलकल करदे सीला माँ
सूख गया है नेह ह्रदय का ईर्ष्या से
इस काँटे को कोंपल करदे सीला माँ
प्यास लबों पर अंगारे सी दहके है
हर पत्थर को छागल करदे सीला माँ
सूरज सर पर तपता है दोपहरी में
सर पर अपना करतल करदे सीला माँ
दूध दही हो जाता है शीतलता से
भाप जमा कर बादल करदे सीला माँ
गम की धूप सताती है फिर बेटों को
पग पग पर फिर पीपल करदे सीला माँ
खंडित को भी मंडित कर देती है तू
कंकर को तू कोमल करदे सीला माँ
क्रोध दया को छाँव नहीं देगा मन में
इस सहरा को जंगल करदे सीला माँ
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आपकी हर गजल शानदार होती है सर
वाहहहहहहहह
इस मन में मद दावानल सा फैला है
करुणा-नद की कलकल करदे सीला माँ
सीला माँ के साथ आपकी कलम के सम्मुख नत हूँ बहुत सुन्दर भावपूर्ण अशआर हुए हैं क्या कहने
सभी एक से बढ़कर एक ...ये तो बहुत ही ज्यादा पसंद आये
सूख गया है नेह ह्रदय का ईर्ष्या से
इस काँटे को कोंपल करदे सीला माँ
प्यास लबों पर अंगारे सी दहके है
हर पत्थर को छागल करदे सीला माँ
बहुत बहुत बधाई आपको खुर्शीद भाई जी
आदरणीय खुर्शीद भाई , बहुत ही सुन्दर ,सधी हुई भावपूर्ण रचना है,
सूख गया है नेह ह्रदय का ईर्ष्या से
इस काँटे को कोंपल करदे सीला माँ.....सुन्दर कामना , बहुत बहुत बधाई आपको ! सादर
इस मन में मद दावानल सा फैला है
करुणा-नद की कलकल करदे सीला माँ क्या बात है! क्या बात है!
सूख गया है नेह ह्रदय का ईर्ष्या से
इस काँटे को कोंपल करदे सीला माँ अभिनन्दन ! अभिनन्दन!
आदरणीय खुर्शीद सर!! पग पग पर आपकी रचनाये हमें नया पाठ सिखा रही है! आप जैसे गुरुभाई पाकर मै धन्य हुआ!!बारम्बार नमन!!
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई |
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