For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"मिठाई का डिब्बा" - [लघुकथा] 29 __शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मिठाई का डिब्बा" -(लघुकथा)

"अरे सुनो, दीपावली पूजा का थोड़ा सा प्रसाद उसको भी तो दो "

"क्यों दें उसको ? साला न मीठी ईद पर बुलाता है घर पर, न कभी बकरीद पे गोश्त खिलवाता है काइयां, मनघुन्ना !"

"दे दो यार, भला आदमी है, ड्यूटी पे कभी टिफिन नहीं लाता, गंभीर होकर ड्यूटी करता है, और सभी धर्मों का आदर भी तो करता है !"

" तो ऐसा करते हैं कि ये वाला प्रसाद तू रख ले और जो प्रसाद अभी चपरासी ने अपन को दिया है, वो उसको दे देते हैं, साला याद रखेगा अगली ईद तक !"

इत्तेफाक़ से कनिष्ठ कर्मचारी सलीम भाई ने स्टाफ-रूम के दरवाज़े पर खड़े ये वार्तालाप सुना और उस मिठाई के डिब्बे पर उसकी नज़रें टिकी रह गयीं, जो वह इन सहकर्मी अधिकारियों के लिए बड़े अरमान से लाया था ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 685

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 4:15am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने एवं प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय निकोरे जी व आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 4:11am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय निकोरे जी व आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on November 11, 2015 at 8:09pm

प्रेम को बढ़ाएं घृणा को दूर भगाएं ... ईद में मिले गले मिलकर दिए जलाएं!

Comment by vijay nikore on November 11, 2015 at 12:41pm

आपकी लघुकथा बहुत पसन्द आई। बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 11, 2015 at 12:07pm
त्वरित प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी व आदरणीय Tej Veer Singh जी ।अनुभव पर आधारित रचना है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 10, 2015 at 1:38pm

आदरणीय उस्मानी जी बढ़िया लघुकथा हुई है. हार्दिक बधाई 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 9, 2015 at 8:03pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!बहुत सुंदरता पूर्वक समाज में व्याप्त इस तुच्छ मानसिकता पर कटाक्ष !मज़ा आगया!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service