जो दुनिया से तन्हा लड़कर प्यार बचाया करते हैं
वो ही सच्चे अर्थों में सन्सार बचाया करते हैं।१।
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उन लोगों से ही तो कायम हर शय की ये रंगत है
जो पत्थर दिल दुनिया में जलधार बचाया करते हैं।२।
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तुम तो अपने सुख की खातिर खून को पानी करते हो
हम राख की ढेरी में देखो अंगार बचाया करते हैं।३।
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जो कहते हैं हम तो डूबे प्यार के रंगो में जीवनभर
होली के रंगों से फिर क्यों रुख़शार बचाया करते हैं।४।
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दिल को तजकर जो चहरे की खातिरदारी ठान रहे
केेेवल वो तो इस तन का व्यापार बचाया करते हैं।५।
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नन्हीं कलियाँ हरदिन यूँ ही अब तो मसली जायेंगी
आज के माली फूलों से बढ़ खार बचाया करते हैं।६।
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वो भी दीमक के वंशज हैं हमने इतना जाना बस
आधारों से जो बढ़-चढ़ आभार बचाया करते हैं।७।
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अधरों पर जिनके रहती है हद से बढ़कर जन सेवा
वो जनता के हित से बढ़ दरवार बचाया करते हैं।८।
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( १७फरवरी)
मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
//होली के रंगों से फिर क्यों बचाया करते हैं//
इस मिसरे में अभी 'रुख़शार' ही
लिखा है,इसे "रुख़सार'' कर लें,बाक़ी मिसरे ठीक हो गए हैं ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई, इस सुंदर रचना पर आपको बधाई, और होली की अग्रिम शुभकामनाएँ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन , गजल पर उपस्थिति, सराहना और कमियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार । इंगित मिसरों को ठीक कर लिया है देखिएगा ।
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