( 212 1212 1212 1212 )
गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का
है पलटना तय तुरंत ज़िंदगी के बाब का
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जिन्न एक सैंकड़ों हयात क़त्ल कर रहा
इंतज़ार है ख़ुदा सदाओं के जवाब का
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हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार
इख़्तियार हो नहीं लगाम पर रिकाब का
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बैठ कर ये सोचना हुज़ूर इतमिनान से
क्या किया है हश्र प्यार के हसीन ख़्वाब का
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सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर
देखना पड़े न रुख़ हमें किसी अज़ाब का
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इख़्तियार आपका है खू-ए-मय पे लाज़िमी
तिश्नगी की हद बढ़े तो जुर्म क्या शराब का
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ज़िंदगी का कारवाँ बशर रुके न जूँ कभी
ख़ौफ़-ए-अब्र से रुके सफ़र न आफ़ताब का
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तार छिन्न भिन्न हों कि हों नहीं कसे हुए
बेसुरा बजे अगर तो दोष क्या रबाब का
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छोड़ कर रह-ए-गुनाह ख़ूबतर मिला सुकूँ
है गुमान आज भी 'तुरंत ' इस निसाब का
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
मौलिक व अप्रकाशित
शब्दार्थ -इ'ताब =प्रकोप , बाब =अनुच्छेद ,
अज़ाब=यातना , खू-ए-मय=शराब पीने की आदत ,
लाज़िमी=ज़रूरी , निसाब=पूंजी, सरमाया
Comment
आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर साहेब , खाकसार का कलाम पसन्द करने और हौसला आफजाई का बेहद शुक्रिया | सबसे पहले तो आपसे निवेदन है कि मेरी रचना पर कमेंट करते समय माज़िरत लफ्ज़ का प्रयोग न करें |
हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार और
मिसरा सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर बह्र में नहीं हैं। ( मेरी समझ में तो बह्र में ही है ,कृपया तक़्तीअ करके बताएं कहाँ गड़बड़ है , अगर समय हो तो ?
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत जी, आदाब।
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने, बधाई स्वीकार करें।
शेअ'र इख़्तियार आपका है खू-ए-मय पे लाज़िमी
तिश्नगी की हद बढ़े तो जुर्म क्या शराब का. लाजवाब है।
मआ़ज़रत के साथ कहना है कि...
मिसरा हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार और
मिसरा सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर बह्र में नहीं हैं। देखियेगा। सादर।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी , रचना पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन के लिए आभार
हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी जी। बेहतरीन गज़ल।
सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर
देखना पड़े न रुख़ हमें किसी अज़ाब का
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