(2122 1212 22/112)
शह्र में फ़िर बवाल है बाबा
ये नया द्रोहकाल है बाबा
एक तालाब अब नहीं दिखता
क्या यही नैनीताल है बाबा?
क्या इसे ही उरूज कहते हैं?
अस्ल में ये ज़वाल है बाबा
भूख हर रोज़ पूछ लेती है
रोटियों का सवाल है बाबा
आंख इतना बरस चुकी अब तो
आंसुओं का अकाल है बाबा
मैं अकेला ही लड़ पड़ा सबसे
देखकर वो निढाल है बाबा
क़ब्र के वास्ते जगह न रही
फावड़ा है कुदाल है बाबा
*मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अमीरुद्दीन ख़ान साहब.
आदाब.
ग़ज़ल पर उपस्थिती तथा हौसला अफजाई के लिए आपका तहे-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.
आदरणीय जनाब सालिक गणवीर जी, आदाब । दमदार अश'आ़र से सुसज्जित शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें। सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय सालिक गणवीर जी। बेहतरीन गज़ल।
आंख इतना बरस चुकी है कि
आंसुओं का अकाल है बाबा
आ. भाई गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई ।
"आंख इतना बरस चुकी अब तो" मिसरे को ऐसे भी किया जा सकता है क्या ? सादर..
आदरणीय राम अवध विश्वकर्मा जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.
ख़याल और ख़्याल दो भिन्न शब्द हैंं,आदरणीय, पहले का अर्थ कल्पना और दूजे का देखभाल होता है. रही बात मात्राओं के उठा ने या गिराने की,तो ऐसा करने से बचना चाहिए. गिरा सकते हैं तो उठाया भी जा सकता है.
आदरणीय सालिक गणवीर जी
नमस्कार। खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई
मेरे विचार से
ये गरीबों का ख्याल है बाबा
में ख्याल की जगह "खयाल " शब्द का प्रयोग होता है
आँख इतनी बरस चुकी है कि
यहां " कि" का वज़्न 2 लिया गया है शायरी में वज्न गिराया जा सकता है लेकिन बढ़ाया नहीं जा सकता।
सादर
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