मन को इतना दे गये, अपने ही अवसाद
नाम पते सड़कें गली, क्या रक्खें अब याद।१।
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जीवन जिसको रेतघर, बादल क्या दे नीर
उसको तो हर हाल में, मिलनी है बस पीर।२।
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भूखा बेघर रख रहा, क्या कम यहाँ अभाव
उस पर करता रात - दिन, मँहगाई पथराव।३।
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थकन बढ़ी है पाँव की, छालों के आसार
मिले कहाँ आराम को, तरुवर छायादार।४।
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भले उजाले का हुआ, बहुत जगत भर शोर
दीपक नीचे क्यों रहा, तमस भरा घनधोर।५।
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आँसू अपने डाल दो, उस आँचल में और
हर दुख पर जो नित करे, माँ के जैसा गौर।६।
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खोजा करें वसंत को, जो पतझड़ को पाल
जीवन कैसे हो भला, फिर उनका खुशहाल।७।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए धन्यवाद ।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन दोहे।
मन को इतना दे गये, अपने ही अवसाद
नाम पते सड़कें गली, क्या रक्खें अब याद।१।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति, स्नेह व प्रशंसा के लिए आभार ।
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आदाब, बहुत शानदार दोहे हुए हैं दाद के साथ बधाई स्वीकार करें। सादर।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार , लाजबाब दोहे आपके
उस पर करती रात - दिन, मँहगाई पथराव।३। लाजबाब
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आ. भाई विजय शंकर जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति, स्नेह व प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।
आँसू अपने डाल दो, उस आँचल में और
हर दुख पर जो नित करे, माँ के जैसा गौर।६।
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी , बहुत सुन्दर , सभी दोहे , हार्दिक बधाई , सादर
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