रात दिन तुमको पुकारा,
किन्तु तुम अब तक न आए !
चित्र मेरी कल्पना के,
मूर्तियों में ढल न पाए !
चिर प्रतीक्षित आस के संग, प्यार अपना बाँट लूँगी ।
उम्र आधी कट गई है, उम्र आधी काट लूँगी !!
प्रेम तुमसे ही तुम्हारा,
किस तरह आखिर छिपाऊँ ?
और कह भी दूँ, कहो यह,
रीत फिर कैसे निभाऊं ?
गूँजते हो धड़कनों की,
थाप पर अनुनाद बन कर !
मौन मन की सिहरनों में,
घुल चुके आह्लाद बन कर !
मंत्र की माला बना कर,
भाव तुमको जप रहे हैं ।
प्राण प्रस्पंदन कपूरी,
आँसुओं में तप रहे हैं ।
बांध में सागर बंधा है,
क्या पता कब टूट जाए !
लाँघ चौखट होंठ की ना ,
शब्द कोई फूट जाए !
तुम अगर हो दूर कह दो,
पास फिर किसको कहूँ मैं !
सत्य का प्रतिबिंब छल कर,
किस तरह जीवन सहूँ मैं !
ज़िन्दगी से मैं अधूरे ,
प्रेम का हर पल घटा कर !
अब प्रतीक्षरत सजे हर,
द्वार का तोरण हटा कर !
सौंप कर यह प्राण निश्छल,
सिर्फ इतना कह सकूँगी !
मैं तुम्हारी थी तुम्हारी,
हूँ तुम्हारी ही रहूँगी !
स्वप्न के आरोह में घुल, दूरियों को पाट लूँगी ।
उम्र आधी कट गई है, उम्र आधी काट लूँगी !!
मैं धुआँ हूँ ख्वाहिशों का,
बूँद में जो ढल न पाई !
ओस बन कर अर्चना की,
पाँखुरी में पल न पाई !
तुम बना पगडंडियाँ नव,
खोजते हो हर दिशा में !
मौन मन के क्रन्दनों को
घोलते हो हर निशा में !
रूप का प्रारूप बुन कर,
ढालते हो कल्पना को !
और खुद रच कर मिटाते,
हो सृजक की अल्पना को !
मैं अनंतिम छोर मेरी,
पूर्णता केवल तुम्हीं हो !
आदि-मध्यम-अंत-गति का
हर वलय प्रतिपल तुम्हीं हो !
मैं विलग तुमसे कहाँ हूँ,
तुम विलग मुझसे कहाँ हो ?
आत्म का प्रस्पंद बन कर,
मैं वहीँ हूँ तुम जहाँ हो ?
आँसुओं की लेखनी हूँ,
मैं नहीं पन्ना शपथ का !
मैं नहीं अनुबंध कोई !
रीतियों के तर्क पथ का,
वेदना की प्यास हूँ मैं ,
ज़िन्दगी में खो न पाई !
उफ़! नियति का लेख अपने,
आँसुओं से धो न पाई !
सर झुका कर नियति के इस पंथ से उच्चाट लूँगी । (उच्चाट= विरक्ति)
उम्र आधी कट गई है, उम्र आधी काट लूँगी !!
मूँद पलकें देखती हूँ ,
सिहरनों की कोर तक तुम !
हो तिमिर या रश्मियाँ हों ,
दृष्टि के उस छोर तक तुम !
तुम समाये हो सदा से ,
आर्द्र मन की प्रार्थना में !
प्राण प्रिय की कल्पन में
क्लांत मन की याचना में !
गूँजते थे बस तुम्हीं तुम ,
किन्तु तुम ही सुन न पाए !
आस में जलते नयन थे ,
किन्तु तुम ही चुन न पाए !
बोल दो क्या आ सकोगे,
सामने संलक्ष्य बन तुम ?
चीखती बेबस कराहों,
के अटल संरक्ष्य बन तुम ?
प्यास की इन रिक्तियों में,
रीतते हर पल क्षमा कर !
टूटती हर धारणा पर,
भीगते आँचल क्षमा कर !
मैं हृदय में जल रही हर,
आस का दीपक बुझा कर !
आँख में पलते हुए हर,
स्वप्न के मोती गिरा कर !
नम प्रतीक्षारत क्षणों से,
चिर जुदाई ले चली हूँ !
मुक्तिपथ पर बन्धनों से
चिर विदाई ले चली हूँ !
सर्जना के मौन स्वर से, मैं नवल स्वर छाँट लूँगी ।
उम्र आधी कट गयी है, उम्र आधी काट लूँगी !!
मौलिक और अप्रकाशित
डॉ० प्राची सिंह
(थीम पंक्ति साभार ... डॉ० सुनील कुमार वर्मा सृजित)
Comment
भाई लक्ष्मण जी
गीत पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार
आदरणीय अमीरुद्दीन जी
जो शब्द 'उम्र' आपको पुनरुक्ति के कारण खटक रहा है .... वो मुझे इस पंक्ति का काव्यात्मक सौन्दर्य प्रतीत हुआ , इसी वजह से मैंने किसी अन्य लेखक की इस थीम पंक्ति को आधार मान कर गीत सृजित किया है ..... ये मुख्य पंक्ति ही गीत का आधार है . जी साभार किसी अन्य रचनाकार की संपत्ति है
सादर
आदरणीय अखिलेश जी
शुद्ध हिंदी के शब्दों में एक गीत तो क्या पूरा का पूरा महाकाव्य बहुत सहजता से हो सकता है...इसमें किसे संशय है, जिसे है वो अपना शब्दकोष दुरुस्त करे और यहीं मंच पर मेरी और अन्य रचनाकारों की कई कई अप्रतिम रचनाओं को पढ़े और यहाँ के आयोजनों के पन्नो पर ठहरे...
रही काव्य में अरबी फारसी के शब्दों की बात तो कुछ शब्द आम बोलचाल में इस तरह शामिल हो चुके हैं कि वो रगों में बहते हैं... उन्हें अलग कर कर के थक जाइएगा... कर नहीं पाइयेगा... और करना सही भी नहीं... इसी तरह सभ्यताएं अपनी संस्कृतिक वैविध्य को जीती हैं और एक्य भाव में अंतर्गुन्थित होती हैं...
कम से कम सहज गीतों में इस सहज प्रवाह को जीना मुझे बहुत सुखद लगता है
गीत तक आप पहुंचें आपका धन्यवाद आदरणीय
आदरणीया प्राचीजी
उम्र उफ खुद ख्वाहिशों जिन्दगी आदि शब्दों के स्थान पर हिन्दी के शब्द समायोजित हो सके तो कृपया अवश्य कीजिए। छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश से वाट्सएप में मुझसे जुड़े कवियों एवं विद्वानों के समूह को यह बतलाना चाहता हूँ कि अरबी फारसी शब्दों के बगैर भी एक लम्बी कविता लिखी जा सकती है। लोगों का कहना है कि 6- 8 - 10 पक्तियाँ तो लिख सकते हैं पर एक लम्बी कविता पूर्णतः हिन्दी में लिखना संभव नहीं।
मुझे विश्वास है कि कुछ संशोधन पश्चात यह रचना 100% हिन्दी में हो सकती है। आपके पास शब्दों का भंडार है इसलिए अर्थ भाव एवं गेयता की दृष्टि से कोई अंतर भी नहीं होगा। ....... इसी आशा के साथ ..... सादर।
इस सुंदर गीत के लिए हृदय से बधाई।
मुहतरमा डॉ० प्राची सिंह जी आदाब, सुन्दर एवं मनोहारी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें।
"उम्र आधी कट गई है, उम्र आधी काट लूँगी" यहांँ पर दो बार "उम्र" शब्द थोड़ा खटक रहा है, यदि उचित लगे तो इसे यूँ कर के देख सकते हैं :
"उम्र आधी कट गई है, और आधी काट लूँगी" सादर।
आ. प्राची बहन, सादर अभिवादन । अच्छा गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।
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