212 1212 1212 1212
ख़ाक हो गयी खुशी, था आग का पता नहीं ।
ख़्वाब सारे जल गए, मगर धुआँ उठा नहीं ।
पूछिये न हाले दिल यूँ बारहा मेरा सनम ।
ये हमारे दर्दोगम का सिलसिला नया नहीं ।।
इक नज़र से दिल मेरा वो लूट कर चला गया ।
इस सितम पे क्यूँ अभी तलक कोई खफ़ा नहीं ।।
रूबरू था हुस्न मेरे और दिल मचल गया ।
कैसे कह दूं आप से हुआ है हादिसा नहीं ।
चाहतों का था असर या इश्क़ था नया नया ।
क्यूँ सिहर गया बदन तुझे था जब छुआ नहीं ।
क्यूँ लिये थे मांग मुझसे मेरी धड़कनों को तुम ।
जब तुम्हें था दिल सभाँलने का तज्रिबा नहीं ।
बेख़ुदी में क्या कहा न पूछिये हूजूर अब ।
लफ़्ज़ जो बहक गए उन्हीं का तर्जुमा नहीं ।।
मयकशी के बाद भी बनी रही यूँ तिश्नगी ।
रिंद जब बता गए अभी ये दिल भरा नहीं ।।
मौलिक अप्रकाशित
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
Comment
आदरणीय डॉ नवीन मणि त्रिपाठी जी नमस्ते,इस खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
आ0 तेज वीर सिंह साहब हार्दिक आभार ।
आ0 आशीष यादव जी हार्दिक आभार
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ नवीन मणि त्रिपाठी जी। बेहतरीन गज़ल।
क्यूँ लिये थे मांग मुझसे मेरी धड़कनों को तुम ।
जब तुम्हें था दिल सभाँलने का तज्रिबा नहीं ।
आहा! बहुत सुंदर। बहुत अच्छी रचना बनी है। बधाई स्वीकार कीजिये।
आ. भाई नवीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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