2122 2122 2122 2122
कैसे कह दें मुल्क में कितनी निखर आयी सियासत ।
क़ातिलों के साथ जब हमको नज़र आई सियासत ।।
चाहतें सब खो गईं और खो गए अम्नो सुकूँ भी ।
इक तबाही का लिए मंज़र जिधर आई सियासत ।।
नफ़रतों के ज़ह्र से भीगा मिला हर शख़्स मुझको ।
कुर्सियों के वास्ते जब गाँव- घर आई सियासत।।
मन्दिरो मस्ज़िद में बैठे खून के प्यासे बहुत हैं ।
क्या हुआ इस मुल्क में जो इस कदर आई सियासत ।।
आदमी का ख़्वाब देखो फिर ठगा सा रह गया है ।
जाने कितने वादे करके फिर मुकर आई सियासत ।।
कर लिया मैंने जो सज़दा उस ख़ुदा के नाम पर।
बात बस इतनी सी थी लेकिन उभर आई सियासत ।।
साजिशें बुनने लगी वो अन्नदाता के लिए अब ।
इस तरह मतलब परस्ती पर उतर आई सियासत ।।
--डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
Comment
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ नवीन मणि त्रिपाठी जी। बेहतरीन गज़ल।
मन्दिरो मस्ज़िद में बैठे खून के प्यासे बहुत हैं ।
क्या हुआ इस मुल्क में जो इस कदर आई सियासत ।।
आदमी का ख़्वाब देखो फिर ठगा सा रह गया है ।
जाने कितने वादे करके फिर मुकर आई सियासत ।।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'जाने कितने वादे करके फिर मुकर आई सियासत'
इस मिसरे में 'मुकर आई' वाक्य विन्यास ठीक नहीं है, देखियेगा ।
'कर लिया मैंने जो सज़दा उस ख़ुदा के नाम पर'
ये मिसरा बह्र में नहीं है, देखियेगा ।
आ0 अजय कुमार मौर्या जी दिल से शुक्रिया
आ0 लक्ष्मण धामी साहब दिल से शुक्रिया ।
आ0 सालिक गनवीर साहब दिल से शुक्रिया
भाईNaveen Mani Tripathi जी
सादर अभिवादन
एक और बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शैर दर शैर दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल करें
आ. भाई नवीन मणि जी, सादर अभिवादन। अति उत्तम समसामयिक गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online