2212 2212 2212 2212
मैं ठोकरें खाता रहा मुझ पर तरस आता था कब ।
इस ज़िंदगी पर सच बताएं आपका साया था कब ।।1
जीता रहा मैं बेखुदी में मुस्कुरा कर उम्र भर।
अब याद क्या करना कि मैंने होश को खोया था कब ।।2
वो कहकशां की बज़्म थी, उन बादलों के दरमियां ।
मुझको अभी तक याद है वो चाँद शर्माया था कब ।।3
जलते रहे क्यूँ शमअ में परवाने सारी रात तक ।
तू वस्ल के अंज़ाम का ये फ़लसफ़ा समझा था कब ।।4
जो अश्क़ में डूबा मिला था दौरे उल्फ़त में सदा ।
वो कह रहा था फ़ख्र से, मैं इश्क़ में रोया था कब ।।5
कुछ तो ख़तायें थीं अदा की शक़ ये पुख़्ता हो गया ।
उसने कहा जब जुल्म दिल पर बे सबब ढाया था कब ।।6
दीवाने दे देते तुम्हें हर प्रश्न पर अपना जवाब ।
तुमने सवालातों को उनसे बाअदब पूछा था कब ।।7
तुझको भुला कर जी सके हालात तो ऐसे न थे ।
तेरे बिना उसको सुकूँनो चैन भी मिलता था कब ।।8
रोशन हुआ है घर मेरा बस आपके आने के बाद ।
कोई चरागां इससे पहले इस तरह जलता था कब ।।9
मौलिक अ प्रकाशित
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी।
Comment
एक बार फिर से आपकी एक और बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली। दिली मुबारकबाद।
आ. भाई नवीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।"
आ0 बृजेश कुमार ब्रज जी बहुत बहुत शुक्रिया
खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय त्रिपाठी जी...
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