For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 2122
अपनी  रानाई  पे  तू  मग़रूर  है  क्या ।
बेवफ़ाई  के  लिए  मज़बूर  है  क्या ।।

कम न हो पाये अभी तक फ़ासले भी ।।
तू  बता  उल्फ़त  की  दिल्ली  दूर  है क्या ।।

दूर तक चर्चा है क़ातिल के हुनर की ।
वो ज़रा  सी उम्र में मशहूर  है  क्या ।।

तोड़ देना दिल किसी का बेसबब ही ।
शह्र   का   तेरे  नया  दस्तूर  है  क्या ।।

ज़ुल्मते शब हो गयी रोशन यहां भी ।
चाँद का उतरा जमीं पर नूर है क्या ।।

हो  रहा  है  हर  तरफ  हंगामा  यारो ।
आ  गई  महफ़िल  में  कोई  हूर  है क्या ।।

जख़्म जो उनसे मिला था चंद दिन में ।
बन गया वह घाव भी नासूर है क्या ।।

आपके लब पर तबस्सुम दर्द में भी
दर्द  साहब  आपका  काफ़ूर है क्या ।।

वह छुपा लेता है चेहरा बारहा क्यों ।
उसकी सूरत चश्म ए बद्दूर  है क्या ।।

मेरा ख़त पढ़के बहुत ख़ामोश है वो ।
फैसला   मेरा   उसे  मंजूर  है  क्या ।।

.

मौलिक अप्रकाशित
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

        

Views: 353

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 11, 2020 at 10:57pm

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।

"अपनी रानाई पे तू मग़रूर है क्या 

 बेवफ़ाई के लिए मज़बूर है क्या " इस शैर के दोनों मिसरों में कोई रब्त नहीं है, ग़ौर करें। "मजबूर" में नुक़्ता नहीं लगेगा।

"कम न हो पाये अभी तक फ़ासले भी 

तू बता उल्फ़त की दिल्ली दूर है क्या"  इस शैर के शिल्प को और बेहतर कर सकते हैं चाहें तो, देखें :

"कम न हो पाये अभी तक फ़ासले क्यों ।

ये बता उल्फ़त की दिल्ली दूर है क्या ।।" 

"ज़ुल्मते शब हो गयी रोशन यहां भी 

चाँद का उतरा जमीं पर नूर है क्या "  "ज़ुल्मते शब" शब्द विन्यास ग़लत है, सहीह शब्द है 'शब-ए-ज़ुल्मत', रौशन और ज़मीं शब्दों की टंकण त्रुटियां दुरुुस्त कर लें। 

"जख़्म जो उनसे मिला था चंद दिन में ।

 बन गया वह घाव भी नासूर है क्या ।।  मिसरा ए ऊला यूँ कर के देखें : ज़ख़्म जो उनसे मिला था कुछ ही दिन में" "ज़ख़्म" में नुक़्ता लगेगा। 

"आपके लब पर तबस्सुम दर्द में भी

दर्द साहब आपका काफ़ूर है क्या" जनाब, मुहावरा दर्द काफ़ूर हो जाना है, दर्द काफ़ूर है नहीं कह सकते, इसे यूँ कर सकते हैं :

" हो गया क्या दर्द भी काफ़ूर है क्या "

"वह छुपा लेता है चेहरा बारहा क्यों ।

"उसकी सूरत चश्म ए बद्दूर है क्या ।।" चहरा में च पर मात्रा नहीं लगेगी, "चश्म ए बद्दूर" ये एक मुहावरा और दुआ है, जिसके मानी."ख़ुदा बुरी नज़र से बचाए" है। इसलिए ये मिसरा बदलने का प्रयास करें। 

आख़िरी शैर में "मंज़ूर" में ज पर नुक़्ता लगा लें। 

जनाब ये सब मेरी पाठकीय राय मात्र हैं मैं भी सीख ही रहा हूंँ। अगर आप को उक्त सुझाव उचित न लगें तो आप उक्त टिप्पणी नज़र अन्दाज़ कर दीजिएगा। सादर।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 11, 2020 at 6:29pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि  जी।बेहतरीन गज़ल।

मेरा ख़त पढ़के बहुत ख़ामोश है वो ।
फैसला   मेरा   उसे  मंजूर  है  क्या ।।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2020 at 7:19pm

आ. भाई नवीन मणि जी, सादर अभिवादन । सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service