मापनी 221 2121 1221 212
हर आदमी ही वक़्त का मारा है इन दिनों.
प्रभु के सिवा न कोई सहारा है इन दिनों.
फिरते सभी नक़ाब में चेहरा छुपा-छुपा,
चारों तरफ अजीब नज़ारा है इन दिनों.
मिलना गले न हाथ मिलाना किसी से तुम,
रहना सभी से दूर ये नारा है दिनों.
तूफ़ान आँधियों के अलावा न कुछ दिखे,
कश्ती से इतनी दूर किनारा है इन दिनों.
जो भी गए थे शहर सभी लौट आये हैं,
मौसम हमारे गाँव का प्यारा है इन दिनों.
सूखे थे जो दरख़्त हुए सब हरे-भरे,
सावन ने उनको ख़ूब दुलारा है इन दिनों.
कैसे कहें कि घर में हमें बोरियत हुई,
बिखरी हुई ग़ज़ल को सँवारा है इन दिनों.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सादर नमस्कार
आपकी हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सादर नमस्कार
आपकी हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार
आपकी हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
वाह आदरणीय शर्मा जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...
आद0 बसन्त कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन
समसामयिक विषयो के इर्द गिर्द घूमती बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार कीजिए
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन ।बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी सादर नमस्कार
आपकी हौसलाअफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी आदाब , आपकी हौसला अफजाई और सुझाव हेतु दिल से शुक्रिया
इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें सादर
हार्दिक बधाई आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी। बेहतरीन गज़ल।
जो भी गए थे शहर सभी लौट आये हैं,
मौसम हमारे गाँव का प्यारा है इन दिनों.
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। उर्दू के अल्फा़ज़ वक़्त, नक़ाब, दरख़्त और ख़ूब में नुक़ते लगा लें।
मिसरा "मिलना गले न मिलाना किसी से हाथ, बह्र में नहीं है देखियेगा, शायद कुछ छूट गया लगता है, मिसरा यूँ भी कर सकते हैं :" "मिलना गले न हाथ मिलाना किसी से तुम"
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