पढ़ी - लिखी जो गृहणियाँ
देखें निज परिवार
घर में बूढ़ी सास हैं
और श्वसुर लाचार
शिशु जिनके हैं पालने
सेवा की दरकार
आया पर छोड़ें नहीं
सहें स्वयं सब भार
गढ़ती हैं व्यक्तित्व वह
जिस विधि कोई कुम्हार
खोट सुधार सहन करें
चाहे विघ्न हजार
सदा करें निष्काम हो
सबके सुख की वृद्धि
प्रेम , हर्ष , ऐश्वर्य की
होती तभी समृद्धि
घर कुटुम्ब के हेतु जो
अपना सुख दे वार
उस गृहणी को नमन है
बार - बार , शत बार
मान करो उस नारि का
आलय की आधार
नीव अगर मजबूत हो
टूटे क्यों दीवार ?
ऐसी नारी को अगर
मिले नहीं सम्मान
दोषी सर्व समाज संग
सारा हिन्दुस्तान
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
रचना अच्छी लगी ,जान कर खुशी हुई ।
आभार आपका
Very good creation हुआ है। congratulations स्वीकार कीजिए।
आभार , शीला शीला जी
आदरणीया दीदी, रचन के लिये बधाई।
आ0 समर कबीर जी, आदाब ,आपको रचना अच्छी लगी , यह जान कर खुशी हुई। हार्दिक धन्यवाद आपको
मयहटरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, अच्छी रचना हुई, बधाई स्वीकार करें ।
भाई लक्ष्मण धामी ' मुसाफिर ' जी , प्रणाम ।
हार्दिक धन्यवाद आपको।
आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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