२२२२/२२२२/२२२२/२२२
शीशे को भी रखने वाले पत्थर लोगों नहीं रहे
यौवन के अब पहले जैसे तेवर लोगों नहीं रहे।१।
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ढूँढा करते हैं गुलदस्ते तितली भौंरे आज यहाँ
काँटों से बिँध फूल को आते मधुकर लोगों नहीं रहे।२।
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केवल आँच जला देती है सावन में भी देखो अब
ज्लाला से लड़ बचने वाले वो घर लोगों नहीं रहे।३।
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एक तो पहले से मुश्किल थी ये कोरोना क्या आया
रोज कमा खाने के भी अब अवसर लोगों नहीं रहे।४।
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एक समय था दुख से लड़ने चौपालें सज जाती थीं
खुशियों में भी आज साथ के मन्जर लोगों नहीं रहे।५।
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देख के हस्ती या दौलत को होते अब तैयार यहाँ
जान बचाने वाले सबकी अफसर लोगों नहीं रहे।६।
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जातधर्म को छोड़ो भी तो धनदौलत या रुतवे हैं
कहने भर को ऊँच नीच के अन्तर लोगों नहीं रहे।७।
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टाट फटे फुटपाथों के या मखमल वाले महलों में
नींद की बातों से अनजाने बिस्तर लोगों नहीं रहे।८।
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मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आ. भाई आशीष जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।
एक उम्दा ग़ज़ल हुई है। सच्चे भावों को पिरोया है आपने। बधाई स्वीकार कीजिए।
आ. भाई बृजेश कुमार जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार । आशा है भविष्य में भी स्नेह मिलता रहेगा ।
आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर आपकी उपस्थिति से लेखन सफल हुआ । स्नेह के लिए आभार ।
आ. डिम्पल जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।
बढ़िया ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी जी...
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें । सादर।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय,तीसरा शेर कमाल है बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
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