1212 - 1122 - 1212 - (112 / 22)
किसी की याद में ख़ुद को भुला के देखते हैं
निशान ज़ख्मों के हम मुस्कुरा के देखते हैं
निकल तो आए हैं तूफ़ाँ की ज़द से दूर बहुत
भँवर हैं कितने ही जो सर उठा के देखते हैं
चले भी आओ कि अब इंतज़ार होता नहीं
कि अब ये रस्ते हमें मुँह चिढ़ा के देखते हैं
ये ज़िन्दगी भी फ़ना कर दी हमने जिनके लिए
वही तो हैं जो हमें आज़मा के देखते हैं
तेरी जफ़ा के निशाँ सब मिटा दिए हमने
दिवार नफ़रतों की फिर गिरा के देखते हैं
दबी हुई थी जो चिंगारी उसको देके हवा
रुमूज़-ए-इश्क़ से पर्दा उठा के देखते हैं
पड़ी है धूल जो बरसों से इस दरीचे में
नुक़ूश होंगे वफ़ा के हटा के देखते हैं
जमी है बर्फ़ जो रिश्तों के दरमियाँ कब से
ज़रा सी धूप उसे भी दिखा के देखते हैं
बचे रहेंगे बनेंगे या राख आतिश में
'अमीर' अब इश्क़ में ख़ुद को जला के देखते हैं
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
मुहतरम जनाब आशीष यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई के लिये दिल की गहराईयों से शुक्रिया। सादर।
सुंदर शेरों से सजी अच्छी गज़ल बनी है। बधाई स्वीकार कीजिए।
आदरणीय जनाब सुशील सरना जी ख़ाक़सार की ग़ज़ल पर आपकी आमद मेरे लिए मसर्रत की बात है, सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से शुक्रिया जनाब। सादर।
वाह आदरणीय जी वाह खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ इस खूबसूरत गज़ल के लिए दिल से मुबारक कबूल फरमाएं सर।
मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, हौसला अफ़ज़ाई और ग़ज़ल पसंद करने के लिये बहुत शुक्रिया। सादर।
आदरणीय अमीरुद्दीन'अमीर'साहब आदाब,वाह बहुत ख़ूब आदरणीय,सारे शेर बहुत ख़ूब हुए हैं, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी मुबारक आमद और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से शुक्रिया।सादर।
जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
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