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जहाँ की नज़र में वो शैतान हैं
समझते हैं हम वो भी इंसान हैं
न हिंदू न यारो मुसलमान हैं
यहाँ सबसे पहले हम इंसान हैं
खु़दा कितने हैं ,कितने भगवान हैं
यही सोचकर लोग हैरान हैं
नहीं उनको हमसे महब्बत अगर
हमारे लिये क्योंं परेशान हैं
रिहा कर मुझे या तू क़ैदी बना
तेरे हैं क़फ़स तेरे ज़िंदान हैं
*मौलिक एवं अप्रकाशित.
Comment
'किसी की नज़र में वो शैतान हैं
हमारे लिए वो भी इंसान हैं'
मतला यूँ कर लें:-
'जहाँ की नज़र में जो शैतान हैं
समझते हैं हम वो भी इंसान हैं'
पहली टिप्पणी में बताना भूल गया था ।
मुहतरम समर कबीर साहिब.
आदाब
इस्लाह के लिए मश्कूर-ओ-ममनून हूँ. सलामत रहें.
'सुना है वो बेचैन हैं आजकल'
इस मिसरे को यूँ कर लें:-
'नहीं उनको हमसे महब्बत अगर'
'कई लोग ऐसे घरों में मिले
दरीचे नहीं हैं हवा-दान हैं
ज़माने को कैसे ख़बर हो गई
यहाँ की दीवारों में भी कान हैं'
ये दो शैर ग़ज़ल से हटा दें ।
आदरणीय समर कबीर साहब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.ग़ज़ल दुरूस्त करने की कोशिश की है, अगर अब भी दोषपूर्ण है तो हटा दूंगा, जनाब.
जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'किसी की नज़र में वो शैतान हैं
हमारी तरह वो भी इंसान हैं'
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।
'न हिंदू कोई न मुसलमान हैं'
इस मिसरे में रदीफ़ 'हैं' की जगह "है" हो रही है, मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'न हिन्दू न यारो मुसलमान हैं'
'उन्हीं के हवाले मेरी जान है
पता है वो सब पे मिह्रबान हैं'
इस मतले के ऊला में रदीफ़ 'हैं' की बजाय "है" हो गई है,और सानी मिसरा बह्र में नहीं है, "मह्रबान" शब्द का वज़्न 2121 होता है,देखियेगा ।
'सुना है वो बेचैन हैं आजकल
बड़े दिन हुए हम परेशान हैं'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।
'जहाँ दर नहीं , न हवा-दान हैं'
ये मिसरा बह्र में नहीं,देखियेगा ।
'न दीवार है न वहाँ कान हैं'
ये मिसरा बह्र में नहीं ,देखियेगा ।
'रखो क़ैद में या रिहा कर मुझे
तुम्हारे हवालात - ज़िंदान हैं'
इस शैर के ऊला में शुतर गुरबा दोष है,और सानी मिसरा भर्ती का है ।
कुल मिलाकर ग़ज़ल में कोई दम नहीं है,हटा दें तो बहतर होगा ।
आदरणीय अमीरूद्दीन अमीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.
मुहतरम जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें। सादर।
भाई हर्ष महाजन जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.
आदरणीय सालिक जी अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत की है । मुबारकबाद क़बूल कीजियेगा ।
सादर
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