For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की -वो कहता है मेरे दिल का कोना कोना देख लिया

वो कहता है मेरे दिल का कोना कोना देख लिया
तो क्या उस ने तेरी यादों वाला कमरा देख लिया?
.
वैसे उस इक पल में भी हम अपनों ही की भीड़ में थे
जिस पल दिल के आईने में ख़ुद को तन्हा देख लिया.
.
उस के जैसा दिल तो फिर से मिलता हम को और कहाँ
सो हमने इक राह निकाली, मिलता जुलता देख लिया.
.
मैख़ाने में एक शराबी अश्क मिलाकर पीता है
यादों की आँधी ने शायद उसे अकेला देख लिया.
.
महशर पर हम उठ आए उस की महफ़िल से ये कहकर
तेरी दुनिया तुझे मुबारक़! तेरा होना देख लिया.
.
बिकने पे आए थे हम भी, शुक्र मनाओ बिक न सके
बोली जिस जिस ने भी लगाई, हम से सस्ता देख लिया.
.
“नूर” इस दुनिया से जाने की तेरी बेला आन पड़ी
तूने वैसे भी जो कुछ था देखने जैसा देख लिया.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1103

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 28, 2020 at 4:55pm

शुक्रिया आ. समर सर, शुक्रिया आ. मनोज भाई 

Comment by मनोज अहसास on September 28, 2020 at 4:05pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय नूर साहब 

आपके और आदरणीय समर साहब के विचार विमर्श को पढ़ रहा था मेरा निवेदन है कि "यादों का कमरा" वाला ख़्याल ज्यादा मजबूत है उसे ही सही करके रखा जाए

बाकी  ग़ज़ल बेहतरीन है ही

सादर

Comment by Samar kabeer on September 28, 2020 at 3:52pm

'यानी समुन्दर के धोखे में कोई क़तरा देख लिया'

मेरे ख़याल में 'कोई' की जगह "उसने" शब्द उचित होगा । 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 28, 2020 at 3:22pm

आ. समर सर एवं मंच के सुधि पाठक गण!
.
मतले में बहुत विचार के बाद तरमीम की है ..
अब मतला यूँ पढ़ा जाए..
.
वो कहता है मेरे दिल का कोना कोना देख लिया
यानी समुन्दर के धोखे में कोई क़तरा देख लिया.
.
साथ ही सुझाव भी दें कि अब यह कैसा लग रहा है.
सादर 

Comment by Sushil Sarna on September 20, 2020 at 9:30pm
आदरणीय बहुत सुंदर प्रस्तुति हार्दिक बधाई
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 16, 2020 at 2:42pm

आ. समर सर ,
पुन: विचार करता हूँ..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 16, 2020 at 2:41pm

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 16, 2020 at 2:41pm

शुक्रिया आ. सालिक गणवीर साहब 

Comment by Samar kabeer on September 15, 2020 at 8:45pm

उचित लगे तो मतले का सानी यूँ कर सकते हैं:-

'तो क्या उसने तेरी यादों का भी कमरा देख लिया'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 15, 2020 at 8:32pm

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । इस बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
33 minutes ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
2 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service