सत्य की तलाश - लघुकथा –
आधी रात का वक्त था। गाँव से दूर पूर्व की ओर एक खाली पड़े खेत में एक चिता सजाई जा रही थी। चारों ओर से पुलिस उस खेत को घेरे हुए थी।ऐसा लग रहा था जैसे पूरे देश की पुलिस यहाँ एकत्र कर रखी हो।पुलिस के अलावा कोई भी नज़र नहीं आ रहा था।
हाँ पुलिस के घेरे से बाहर अवश्य एक भीड़ जुटी हुई थी।भीड़ में कुछ लोग रो रहे थे। कुछ हँस भी रहे थे।कुछ नारे लगा रहे थे।
इसी बीच एक सौ साल से ऊपर का वृद्ध पुरुष सफेद धोती से अपना जर्जर शरीर लपेटे हुए हाथ में एक लाठी लिए भीड़ को चीरते हुए पुलिस के समक्ष जा पहुँचा।
"कौन हो बाबा? क्या चाहिये?"
"मैं गाँधी हूँ। मुझे सच्चाई की तलाश है।"
"आप क्या करोगे सच्चाई का?"
"मैं तो सत्य और अहिंसा का पुजारी हूँ।"
"आप थोड़ा देर से आये बापू।"
"क्या मतलब?"
"सच्चाई की मौत हो गयी।"
"तो इस चिता में क्या है?"
"यह तो उसकी लाश है।"
"मुझे उसकी लाश ही दे दो। मैं विधि विधान से उसका अंतिम संस्कार कर दूंगा।"
"वह तो जल चुकी बापू।"
"यहाँ इतनी पुलिस होते हुए भी ऐसा कैसे होने दिया आप लोगों ने?"
"हम लोग तो आपके ही उसूलों का पालन कर रहे हैं।"
"मेरे उसूल, कौन से उसूल?"
"ना देख बुरा, ना सुन बुरा ना बोल बुरा।"
मौलिक, अप्रकाशित एवम अप्रसारित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।
हार्दिक आभार आदरणीय रचना भाटिया जी।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी।आदाब।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, बेहतरीन लघुकथा हुई। बहुत ख़ूबसूरती से आपने हाल की घटना की तरफ़ इशारा किया।बधाई।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, समसामयिक घटनाओं पर मार्मिक व्यंग्य प्रस्तुत करती हुई लघुकथा रोमांचित भी करती है. कलम को सत्य की तलाश में लगे रहना चाहिए. सादर!
हार्दिक आभार आदरणीय शरद सिंह "विनोद"।
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