मेटती आयी है घर की तीरगी दीपावली
सब के मन में भी करे अब रोशनी दीपावली।१।
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रीत कितने ही युगों से चल रही हो ये भले
हर बरस लगती है सब को पर नई दीपावली।२।
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तोड़ आओ ये नगर का जाल कहती साथियों
गाँव की नीची मुँडेरों पर जली दीपावली।३।
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दीप सब ये प्रेम और' विश्वास के हैं इसलिए
आँख चुँधियाती नहीं साथी घनी दीपावली।४।
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घुट गया है आज तम का दम अकेले में यहाँ
कह रही झोपड़ अटारी पर सजी दीपावली।५।
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एक बुझता है तो जलता है कँगूरे पर नया
गौर कर समझो तो सबकी जिन्दगी दीपावली।६।
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है नहीं उनके मुक़द्दर में यहाँ इक दीप जब
क्यों अमा की रात में फिर यूँ मनी दीपावली।७।
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आज तो अँधियार ढल कर ही रहेगा मानिए
दीप से जब दीप जलकर बन गयी दीपावली।८।
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कुछ न दे निर्धन को धन की देवी चाहे आज पर
नित करे जगमग यहाँ उम्मीद की दीपावली।९।
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दीप पथ के जागते हैं जब अमावस जान कर
है 'मुसाफिर' सत्य अर्थों में वही दीपावली।१०।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
( सम्पूर्ण ओबीओ परिवार को पावन पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ )
Comment
आ. भाई बृजेश जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार।
वाह वाह आदरणीय धामी जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है दीवाली के उपलक्ष में...
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी। लाज़वाब गज़ल।
घुट गया है आज तम का दम अकेले में यहाँ
कह रही झोपड़ अटारी पर सजी दीपावली।५।
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जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
आपको भी दीपाली की हार्दिक बधाई
और शुभकामनाएँ ।
आ. भाई चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, स्नेह व कमियों को इंगित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद। मतले में शीघ्र सुधार का प्रयास करता हूँ । सादर...
भाई लक्ष्मण धामी जी, दीपावली भाई दूज दोनों मुबारक हो ! भाई जी आपकी ग़ज़ल के मतले के मिसरों मेंं राबता नहीं जान पड़ा। बाकी शेऱ अच्छे है।
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