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1
एक आवाज़ कानों में आती रही
रूह के पार मुझको ले जाती रही
2
ख़्वाब आँखों को हर पल दिखाती रही
ज़िन्दगी उम्र भर बरगलाती रही
3
रूह लफ़्ज़ों में ढल कागज़ों पर उतर
बज़्म में आह-ओ-नाले सुनाती रही
4
उसने छोड़ा मुझे ऐसे अंदाज़ से
साँस थमती रही जान जाती रही
5
ढाई आख़र की चाहत में वो रात दिन
दिल से दिल चुपके-चुपके मिलाती रही
6
सुर सजा कर लबों पर मुहब्बत भरे
रागिनी रोज़ 'निर्मल' वो गाती रही
मौलिक व अप्रकाशित
स्वरचित
रचना निर्मल
Comment
//रूह*हर दर्द अपना भुलाती रही//
यूँ कहें तो:-
'रूह के पार मुझको बुलाती रही'
आ. रचना बहन सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई। मेरे हिसाब से मिसरा यह करें तो अधिक अच्छा रहेगा
रूह सुन दर्द अपना भुलाती रही ..
आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।
सर् सुधारने की कोशिश की है। देखें क्या सहीह है ?
एक आवाज़ कानों में आती रही
रूह*हर दर्द अपना भुलाती रही
आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर् ग़ज़ल तक आने तथा मार्गदर्शन करने के लिए आपकी आभारी हूँ।सर् सानी बदलने का प्रयास करती हूँऔर आपको दिखाती हूँ।जो लफ़्ज़ ग़लत हैं उन्हें फेयर में ठीक कर लेती हूँ।
सादर।
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी नमस्कार।ग़ज़ल तक आने तथा हौसला बढ़ाने के लिए आपकी आभारी हूँ
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, रूहानी अंदाज़ में अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ, उस्ताद मुहतरम की इस्लाह पर ग़ौर कीजियेगा। सादर।
मुहतरमा रचना निर्मल जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'रूह के पार मुझको ले जाती रही'
इस मिसरे में 'ले' शब्द में मात्रा पतन उचित नहीं, सुधार का प्रयास करें ।
'ज़िन्दगी उम्र भर बरगलाती रही'
इस मिसरे में 'बरगलाती' को "वरग़लाती" कर लें ।
'रागिनी रोज़ 'निर्मल' वो गाती रही'
इस मिसरे में 'वो' शब्द भर्ती का है,इसे यूँ कहें:-
'रागिनी रोज़ 'निर्मल' सुनाती रही'
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