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नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ

अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं।

                    **

रात छत पे जब निकल आता है तू

इन सितारों को मैं जुगनू कहता हूँ।                      **   

       

 ये जो तन से मेरे आती है महक़..

मैं इसे भी तेरी खुशबू कहता हूँ।

                      **

ये अदब,शोख़ी, नज़ाकत, लहज़े में..

मैं इसी लहज़े को उर्दू कहता हूँ।

                      **

सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप

मैं सदा को तेरी जादू कहता हूँ।

                     **

जान कहता था जो तू ,सो अब भी मैं

जान खुदको तुझको जानू कहता हूँ।

******************************

         मौलिक व अप्रकाशित

******************************

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 3, 2021 at 8:31pm

बहुत ही भावपूर्ण ग़ज़ल कही है आदरणीय..बधाई

Comment by Samar kabeer on February 26, 2021 at 5:53pm

// क्या सभी मिसरों में रवानी नहीं है//

बिल्कुल !

मिसाल के तौर पर:-

'नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ

अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं'

इस मतले की तक़ती'अ देखें:-

नेह के--22

आँसू--22

को सर--22

जू कह-22

ता हूँ--22---यानी 5 फ़ेलुन

अपने--22

पन से--22

तुझको--22

मैं तू--22

कहता--22

हूँ--2---5 फ़ेलुन 1 फ़ा

एक बात हमेशा ध्यान में रखें कि मात्रा पतन अरूज़ का कोई नियम नहीं है, सिर्फ़ एक छूट है, जितना कम मात्रा पतन होगा उतना ही शैर सुंदर होगा ।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 26, 2021 at 4:15pm

सादर अभिवादन समर सर क्या सभी मिसरों में रवानी नहीं है?

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 26, 2021 at 3:55pm

आ. भैया लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी हौसलाफजाई के लिए बहुत शुक्रिया हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on February 24, 2021 at 10:58pm

जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिम बहुत ज़ियादा मात्रा पतन से मिसरे रवानी में नहीं हैं,बधाई स्वीकार करें ।

'सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-

'जब थकन पी जाती है मेरी ये धूप'

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 24, 2021 at 8:57pm

आदरणीय समर सर ग़ज़ल पर आपका बेसब्री से इंतजार था। पोस्ट में अरकान लिखना भूल गया। 

2122 2122 212

Comment by Samar kabeer on February 24, 2021 at 8:52pm

जनाब जान गोरखपुरी जी आदाब, इस ग़ज़ल पर कुछ लिखने से पहले जानना चाहता हूँ कि आपने अरकान क्या लिये हैं?

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2021 at 6:04am

आ. भाई क्रिस जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 21, 2021 at 6:39pm

हार्दिक आभार भाई गुमनाम पिथौरागढ़ी जी ग़ज़ल पर आपकी मोहब्बतों के लिए।

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 20, 2021 at 5:57pm

भाई जी वाह अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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